तीखी कलम से

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

मुक्तक की दहलीज से

तेरी पाजेब की घुघरू ने दिल से  कुछ कहा होगा.|
लबों ने बंदिशों के शख्त पहरों को सहा होगा ||

यहाँ गुजरी हैं रातें किस कदर पूछो ना तुम हम से |
तसव्वुर में तेरी तश्वीर का हाले बयाँ होगा ||

यहाँ ढूढ़ा वहाँ ढूँढा ना जाने किस जहाँ ढूँढा  |
किसी बेदर्द हाकिम से गुनाहों की सजा ढूँढा ||
वफाओं के परिंदे उड़ गये हैं इस जहाँ से अब |
जालिमों के चमन में मैंने कातिल का पता ढूँढा ||

शमाँ रंगीन है फिर से गुले गुलफाम हो जाओ  |
मोहब्बत के लिए दिल से कभी बदनाम हो जाओ ||
चुभन का दर्द कैसा है जख्म तस्लीम कर देगा || 
वक्त की इस अदा पे तुम भी कत्ले आम हो जाओ ||

ये साकी की शराफत थी जाम को कम दिया होगा |
तुम्हारी आँख की लाली को उसने पढ़ लिया होगा ||
बहुत खामोशियों से मत पियो ऐसी शराबों को |
छलकती हैं ये आँखों से कलेजा जल गया होगा ||
                                                       नवीन  

13 टिप्‍पणियां:

  1. भाई नवीन जी आपसे आपके ब्लॉग से और आपकी रचनाओं से परिचय अच्छा लगा |

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  2. बहुत खामोशियों से मत पियो ऐसी शराबों को |
    छलकती हैं ये आँखों से कलेजा जल गया होगा ||
    वाह! खूबसरत मुक्तक...
    सादर बधाई नवीन भाई जी...

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  3. शमाँ रंगीन है फिर से गुले गुलफाम हो जाओ |
    मोहब्बत के लिए दिल से कभी बदनाम हो जाओ ||
    चुभन का दर्द कैसा है जख्म तस्लीम कर देगा ||
    वक्त की इस अदा पे तुम भी कत्ले आम हो जाओ ||
    sunder bhav
    badhai aapko
    rachana

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  4. ये साकी की शराफत थी जाम को कम दिया होगा |
    तुम्हारी आँख की लाली को उसने पढ़ लिया होगा ||
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  6. बहुत बढ़िया ... सुंदर ,प्रभावित करती पंक्तियाँ

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  7. भावों से नाजुक शब्‍द......बेजोड़ भावाभियक्ति....

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  9. ये साकी की शराफत थी जाम को कम दिया होगा |
    तुम्हारी आँख की लाली को उसने पढ़ लिया होगा ||
    बहुत खामोशियों से मत पियो ऐसी शराबों को |
    छलकती हैं ये आँखों से कलेजा जल गया होगा ||

    वाह, वाह ,वाह !!!!हसीन तरीन लाजवाब, बेमिसाल

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