तीखी कलम से

शनिवार, 9 जून 2012

   शंखनाद

                                  -नवीन मणि त्रिपाठी



      आज अपने खेत से आसमान में टकटकी लगाये गोखले के मन में बार बार यही खयाल आ रहा था कि कब दिखेंगे वे पानी वाले बादल ? मानो गोखले की फसल ही नहीं झुलस रही थी ,बल्कि उसके अन्तर मन में कल्पनाओं की लहलहाती फसल में जैसे आग सी लगी हुई थी । बेटी की शादी का रिश्ता तो पहले से ही तय कर चुका था। इसी वर्ष तो उसे शादी भी करनी थी। पिछले साल बेटी की पढाई, कापी किताब का इन्तजाम नहीं हो पाने की वजह से रोक दी थी । रोकता भी क्यों ना बेेटे की पढ़ाई उसे ज्यादा जरूरी लगी थी । दोनों का खर्चा चला पाना गोखले के बस की बात नहीं थी। प्राइवेट बैंक वालों ने बड़े मॅहगे दर पर कर्ज दिया था। फसल आने से पहले ही किसी किसी गिद्ध की तरह घर पर मडराने लगे थे । कमाई का ज्यादातर हिस्सा तो वही लोग वसूल ले गये थे। फिर इधर उधर की गणित लगाकर जैसे तैसे परिवार की गाड़ी तो चलानी ही थी।


      खयालों की तन्द्रा टूटते ही जानवरों के चारे के इन्तजाम लग गया तभी गॉव में एक हलचल का आभास उसे पलट कर गॉव की ओर देखने के लिए विवश कर दिया। जोर जोर से चीखने रोने की आवाजें बीच गॉव से आ रहीं थीं ं।गोखले के पैरों में गजब की ऊर्जा आ गयी और तेज गति से दौड़ते हुए गॉव की ओर चल पड़ा। आवाजें रमेश बोडालकर के घर से आ रहीें थीं । गोखले को समझते देर ना लगी कि शायद बहुत दिनों से टी0बी0की बीमारी झेल रहे बोडालकर अब नहीं रहे । बोडालकर ठीक भी कैसे होता कर्जा भरते भरते वह तो खोखला हो चुका था। पिछले साल उसकी फसल खराब हो गयी थी मगर वे गिद्ध मडराने से कहॉ बाज आये थे ?आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपइया की हालात को झेल पाना सबके बस की बात तो थी नहीं । सुरसा जैसी मुॅह फैलाए महॅगायी की मार सबसे अधिक बोडालकर ही झेला था। आये दिन इन प्राइवेट बैंकों के एजेंट लोगों ने उसका जीना मुहाल कर रखा था। रोज रोज जमीन हड़पने की धमकी भी तो यही एजेंट ही देकर जाते थे। आखिर कैसे चुकता करता वह अपना कर्ज ? घर में खाने तक के लाले पड़े हुए थे । भुखमरी की कगार पर आ बैठा था बोडालकर का परिवार । नहीं हो पाई दवाई , और अन्त में उसे मरना ही पड़ा। सोचते सोचते गोखले बोडालकर के दरवाजे तक पहुॅच गया।


   ‘‘मार डाला रे ........मार डाला रे .....‘‘छाती पीट पीट कर सन्नो बाई रो रहीं थीं।बेटे बेटियां हर कोई जोर जोर से चाीख चीख कर रो रहे थे। पूरे गॉव का मजमा लगा था। हर कोई आवाक था। बीमार बोडालकर की मौत स्वाभाविक नहीं थी । बोडालकर ने फॉसी लगा कर आत्महत्या की थी। लोगों ने बतााया बोडालकर के खेत की कुड़की की नोटिस उसे अभी कल ही मिली थी।खेतिहर जमीन तो किसान की आत्मा होती है। जी हॉ वही किसान जो सबका अन्नदाता है। अगर जमीन ही चली जाएगी तो किसान के जिन्दा रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। फिर बोडालकर भी तो एक किसान ही था। आखिर किस आत्मशक्ति के सहारे वह जीवन जीता । उसे तो मरना ही था।
      थोड़ी देर मे पुलिस की जीप आयी ।थानेदार ने बोडालकर के लाश की तलाशी ली । जेब से सोसाइट नोट की पर्ची निकली उसमें लिखा था -‘‘जिसके सहारे मैं जी रहा था वह मेरी जमीन थी।जमीान जाने के बाद मैं अपने परिवार की बेबसी नहीं देख सकूंगा । मै जा रहा हूॅ। मेरे परिवार को परेशान मत किया जाए।‘‘लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गयी । गॉव वालो का गुस्सा उबाल पर था। सरकार के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगने लगे । विपक्षी पार्टियों को मुद्दा मिल गया। अखबारों में किसान रमेश बोडालकर की आत्महत्या की खबर पहले पेज पर छापी गयी। माधवपुर गॉव के रमेश बोडालकर की आत्महत्या पर विपक्षी दलों ने विधानसभा में हंगामा करके वाक आउट किया। चुनाव का माहौल था।  माधवपुर गॉव में नेताओं का जमावड़ा शुरू हो गया। किसान यूनियन ने माधवपुर गॉव में रैली की घोषाणा की।


       सरकार की भ्रष्टनीतियां किसानों को आत्महत्या के लिए प्ररित कर रही हैं। इस तरह के पोस्टर जिले भर में लगाये जाने लगे। प्रशासन की ओर से आनन फानन में जिला अधिकारी महोदय का स्थानान्तरण किया गया।जॉच के लिए कमेटी का गठन किया गया परन्तु विपक्षी इस मुद्दे को कहॉ शाान्त होने देना चाहते थे। विपक्षी दलों ने रमेश बोडालकर की आत्महत्या को जन आन्दोलन बनाने के लिए शंखनाद कर दिया था। अन्ततः मुख्यमंत्री ने भी माधवपुर गॉव के दौरे की तारीख को  सुनिश्चित कर दिया था।

      
        आज माधवपुर गॉव प्रदेश का महत्वपूर्ण गॉव बन चुका था। रमेश बोडालकर की मृत्यु हुए पन्द्रह दिन बीत चुके थे। गॉव की निहायत कच्ची सड़के खो चुकी थीं । गॉव के सभी गली कूचों में खड़न्जे की सड़के बना दी गयीं थीं।गॉव को पिच रोड से जोड़ दिया गया था। वर्षो से बन्द पड़े ट्यूबेल को चालू कर दिया गया था। किसान सेवा केन्द्र व सहकारी समितियों मे रौनक आ चुकी थी। खाद ,बीज, व दवाएं पूरे गॉव के किसानों को वितरित किया गया था। प्राइमरी स्कूल की रगाई पुताई हो चुकी थी। गॉव के कुॅए और बन्द पड़े इण्डिया मार्का नल सब कुछ बेहतर कर दिये गये थे। विद्युत विभाग ने दस दिन के अन्दर ही गॉव का विद्युतीकरण करा दिया था। सभी पोलों पर लाइटें लगा दी गयाीं थीं।ऐसा लग रहा था जैसे बोडालकर की मौत ने गॉव में विकास की गंगा बहा दी हो। आज तो गॉव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। ढेरों लाल नीली बत्ती वाली गाड़ियां गॉव में आ चुकी थीं।गणेश धापोडकर के खेत में हेली पैड बनाया गया था। पूरे गॉव में हजारों की भीड़ उपस्थित थी। डी0एम0साहब, डी0एस0पी0साहब वायरलेस सेट पर पल पल की खबर से वाकिफ हो रहे थे। किसी पर्व की भॉति माधवपुर गॉव सज गया था।मुख्यमंत्री जी का हेलीकाप्टर थोड़ी ही देर में पहुॅचने वाला था। मुख्यमंत्री जी के सवालों का जबाब कैसे देना है इसकी ट्रेनिंग गॉव के हर परिवार को प्रशासन की ओर से दे गयी थी।

    
     तेज हरहराहट की आवाज गॉव के पश्चिम दिशा की ओर आयी और देखते ही देखते मुख्यमंत्री जी का हेलीकाप्टर धापोडकर के खेत में उतर गया। मुख्यमंत्री व उनकी पार्टी के जिन्दाबाद के नारे से पूरा गॉव गूंज उठा। डी0एम0साहब , डी0एस0पी0साहब व क्षेत्र के विधायक व अन्य नेताओं ने उनकी अगवानी की । कुछ ही पलों में मुख्यमंत्री जी का काफिला रमेश बोडालकर के घर पहुॅच गया। मुख्यमंत्री जी ने स्वयं उनके परिवार का कुशल क्षेम पूॅछा। सन्नो बाई उन्हें देख कर रोने लगीं । मुख्यमंत्री जी ने उन्हें पॉच लाख रूपये का चेक भेंट किया,साथ ही उनका सारा सरकारी कर्जा माफ करने का आदेश दिया।एक बार फिर मुख्यमंत्री जी के जयकारों व जिन्दाबाद के नारों से पूरा गॉव गूंज उठा। गॉव के सभी किसानों के सरकारी कर्जे पचास प्रतिशत माफ कर दिये गये। रमेश बोडालकर की मौत को जन आन्दोलन का रूप देने के लिए विपक्षी दलों के द्वारा किये गये शंखनाद से पूरा गॉव का रूप तो वाकई बदल चुका था।कृषि यंत्रों ,खाद बीज  आदि पर भी पचास प्रतिशत के सरकारी अनुदान की घोषणा की गयी थी।विपक्षियों का मुॅह बन्द हो गया था।मुख्यमंत्री जी का यह कार्य अखबारों में सुर्खियां बटोर रहा था। कुछ महीनों बाद चुनाव आया मुख्यमंत्री जी की पार्टी का क्षेत्रीय उम्मीदवार चुनाव जीत गया । मुख्यमंत्री जी पुनः अपने पद पर आसीन हुए।


       आज बोडालकर की मौत के दो वर्ष बीत चुके थे। लोगों सरकारी कर्जा माफ होने से थोड़ी राहत जरूर मिली थी । कुछ ही महीनों के बाद सारे अनुदान समाप्त हो गये थे। गॉव का बिजली वाला ट्रांसफारमर महीनों से जला पड़ा था। नया लगाने के लिए इंजीनियर घूस मॉगता था। गॉव के सड़कों की ईट उधड़ चुकी थी। सड़कों में बड़े बड़े गड्ढे नजर आने लगे थे। बोडालकर के बेटे खेती करना छोड़ चुके थे।अब वे अपनी दूकान चलाते थे। अब कर्ज लेकर खेती नहीं करना चाहते थे। उन्हें समझ में आ चुका था कि किसानी करके जीवन यापन नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री की सहायता राशि से उनका जीवन स्तर बदल चुका था। उन्हें अब खेती किसानी में अब घाटे का सौदा नजर आने लगा थां । गॉव का किसान एक बार फिर बेहाल था। सूखा पड़ने की स्थिति बन चुकी थी। जुलाई अपनी समाप्ति ओर थी । दूर दर तक मानसूनी बादलों का काई अता पता तक नहीं । खेतों की मॅहगी सिचाई कमर तोड़ रही थी । सरकारी कर्जा भी मिलना मुश्किल होता जा रहा था। कर्जा दिलाने वाले दलालों के रेट बढ़े हुए थे। प्राइवेट बैंकों से कर्ज लेना तो और भी खतरनाक था। महाजन की चॉदी थी वहॉ से कर्जे मिल जाते मागर समय से वापसी ना कर पाने पर इज्जत धन और जान की आफत मोाल लेना था। किसान सेवा केन्द्रो के बीज ,खाद सब कुछ महाजनों के नाम हो जाता था। फिर वही ब्लैक में खरीदा जा रहा था।


         गोखले तो बेटी की शादी कर चुका था। शादी में भी उसे कर्ज लेना पड़ा थां। खेतों की जुताई के लिए महाजन का ट्रैक्टर बुलाने गया था। पिछले दो दिनों से खेत में ट्रैक्टर का इन्तजार करके घर वापस चला आता। महाजन ने ट्रैक्टर नहीं भेजा उसे ट्रैक्टर नहीं भेजने की वजह मालूम थी, मगर खेत की जुताई अगर समय से हो जाए तो उसके बहुत फायदे थे। गरज अपनी थी इसलिए उसे फिर महाजन के यहॉ जाना ही पड़-
‘‘बाबू जी नमस्ते ।‘‘
‘‘ हॉ गोखले ! ट्रैक्टर के लिए आए हो ना तुम ?‘‘
‘‘जी बाबू जी बड़ी मुश्किल से सिचाई हो पायी है। समय निकल जाने पर बड़ा नुकसान हो जायेगा।‘‘
‘‘गोखले सही कहते हो तुम ! अपना नुकसान बहुत दिखता है तुम्हें। कभी मेरे नुकसान के बारे में भी सोचते हो। पिछले धन का ब्याज तक नहीं चुकता किया है तुमने । मैं तुम्हें कब तक ढोता रहूंगा। मैं कोई टाटा बिड़ला हॅू क्या ? अरे मेरे भी बाल बच्चे है अगर ऐसा ही करता रहा तो तुम मुझे भी रोड पर ला दोगे ं। ट्रैक्टर पहले नगद वालो के काम के लिए है ना कि उधार वालों के लिए।‘‘
‘‘बाबू जी फसल काटने के बाद अदा कर दूगा। आप ही के सहारे तो जिन्दा हूॅ , अब आप भी ऐसा कहेंगे तो कहॉ जाउंगा ?सरकारी बैंक वाले का भी अभी बाकी है । तीन नोटिस आ चुकी है । प्राइवेट बैंक वाले का पॉच हजार रूपया दस हजार में बदल चुका है। उसके लोग अलग से धमकी देकर जाते हैं । ‘‘
‘‘गोखले हमें तो लगता है बोडालकर की तरह तू भी एक दिन झूल जा। जीते जी तो कुछ कर नहीं पाया हॉ मरने के बाद तेरे भी घर का कायाकलप जरूर हो जायेगा। ......या फिर...............अपनी दो बीघे जमीन मुझे लिख दे । ‘‘
जमीन लिखने की बात सुनकर गोखले का मस्तिष्क सुन्न सा हो गया ।
‘‘ बाबू जी जमीन ही तो मेरी पूॅजी है,जिसके सहारे चल रहा हूॅ। ‘‘
‘‘देख गोखले ! मक्कारीपना हमसे मत करना ।कभी कहता है कि बाबू जी आपके ही सहारे चल रहा हूॅ और अब जुबान पलट के कहता है कि जमीन के सहारे ..............। गोखले तेरी नीयत खराब है.....जा चला जा यहॉ से मैं तेरी कोई मदत नहीं कर सकता । और हां जो पैसा बकाया है उसके एवज में जो कुछ भी तेरे पास गहना जेवर बरतन  है उसे मेरे पास रख जाना समझे ? वरना तुम्हारी खाल खिंचवा लूंगा । साला...बड़ा आया जमीन वाला ।‘‘

गेाखले काफी निराश होकर लौट रहा था। तभी एक जीप बगल मे आकर रूक गयी । शायद तहसीलदार साहब की थी ।
‘‘ क्या नाम है तेरा ?‘‘
‘‘सर संजय गोखले।‘‘
‘‘चल गाड़ी में बैठ। तेरे जैसे लोंगों को नोटिस भेजने  से कोई असर नहीं पड़ता है।‘‘
‘‘सर आपके पैर पकड़ता हूॅ ,जुताई का समय चल रहा है। मैं बरबाद हो जाऊॅगा ।बहुत मुफलिसी में जी रहा हूॅ.......साहब। इन्तजाम होते ही पहुॅचा दूॅगा। साहब मैंने पैसा उड़ाया नहीं था। इन्हीं खेतों में ही लगाया था। क्या करूं साहब ...........नहीं कमा पाया.....। मजबूर हो गया साहब। साहब आपकी थोड़ी दया हो जाए साहब .........जी साहब .......मैं अदा करूंगा साहब। ‘‘
‘‘अबे गाड़ी में बैठ चुपचाप बकवास बाद में करना। चल चौदह दिन तक जेल की हवा खायेगा तो तेरी सारी मजबूरी ठीक हो जायेगी ।‘‘

      तहसीलदार साहब के इतना कहते ही गाड़ी में बैठे सिपाही और अमीन ने धक्का देकर गोखले को जीप के अन्दर ठेल दिया।
 
       गेाखले को  जेल जाने की चिन्ता कम मगर बरबाद हो रही खेती और रोज जुगाड़ के सहारे चल रही रोटियों की चिन्ता अधिक थी । फीस जमा नहीं कर पाने से बेटे का नाम भी स्कूल से काट दिया गया था।

   गेाखले के जेल जाने से पत्नी रमा बाई बहुत दुखी हो गयीं थीं। घर में कुछ भी नहीं कैसे छुड़ाएं गोखले को ?कुछ सोच कर एक बार फिर महाजन के अलाव कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।रमा बाई महाजन के घर पहुॅच गयीं ।
 ‘‘बाबू जी मेरा गोखले जेल चला गया है। बाबू जी उसे छुड़ा लीजिए। जब गोखले आयेगा इन्तजाम करके दे दूंगी। ‘‘
‘‘ऐसा है रमा बाई मेरा पैसा जो बाकी है उसका तो तुमने कोई नाम ही नहीं लिया। कुछ जेवर जेवरात तो होंगे ही........ ले आओ........फिर सोचते हैं । ‘‘
‘‘बाबू जी हम जेवर कहॉ से लायेंगे ?घर में पहनने के लिए ढ़ंग के कपड़े तक तो हैं नहीं ।‘‘
महाजन का लहजा कड़क हो गया। ‘‘रमा बाई पैसे कमाने के हजारों रास्ते हैं । सड़क वाले ढाबे पर देखो रोज शाम को ट्रकों पर चढ़ती हैं और सबेरे पॉच छः सौ लेकर लौटतीं हैं । लेकिन तुम बेवकूफों को कौन समझाए ।जब तुम्हारे पास कुछ नहीं है तो मेरे पास कौन सा खजाना रखा है? ‘‘
      रमा बाई का चेहरा लाल हो चुका था। अचानक ही आपे से बाहर हो गयीं । -‘‘ बाबू जी ट्रकों पर जिसकेा जाना होगा वह जाए । मैं इसी गॉव में मर जाऊॅगी और कहीं नहीं जाऊॅगी ...........समझे ? ये जो तुम्हारी कार कोठी है , ये सब मेरे मरद के खून पसीने की कमाई से चूसी गयी है। मुझको ट्रकों पर भेजने की सलाह देने वाले तुम कौन होते हो ? अपने घर वाालों कों ट्रकों पर क्यों नहीं भेजते............. ?‘‘
‘‘ रमा !................तुमको ज्यादा बदतमीजी आ गयी है। अगर एक शब्द भी बाहर निकाला तो तेरी जुबान काट लूंगा। .........साली ......कमीनी.....। जा भाग मेरे दरवाजे से नही ंतो  अभी कुत्ते बुला कर नोचवाउंगा। ‘‘
    रमा बाई की ऑखों में ऑशू आ गये और खामोशी के साथ अपने घर की ओर लौट पड़ी। घर लौट कर खाना का इन्तजाम भी करना था। कल रात में खाना नहीं बना था। सबेरे पड़ोसी के यहॉ से आटा उधार लेना था। बोडालकर के बच्चों की दूकान ठीक चलती थी,मगर अब वह भी उधार नहीं देता था। पड़ोसियों के यहॉ से भी कुछ खास सहयोग नहीं मिल पाता था। दोनों वक्त खाना बनना मुश्किल हो गया था। पिछले एक माह से एक बार ही बन पाता था। थोड़ी बहुत मेहरबानी धापोडकर के परिवार वालों कीे थी ।उनके यहॉ से पन्द्रह किलो आटा उधार मिल गया था। हॉ इस बीच जिन्दगी जीने कीे एक किरण जरूर नजर आ रही थी । घर पर बधी भैंस दस बारह दिनो में बच्चा देने वाली थी। दूध बेच कर घर के दाल रोटी का जुगाड़ तो हो ही जायेगा। डूबते घर को बचाने के लिए रमा बाई अपने नाबालिक बेटे को काम्टे के ईंट वाले भट्ठे पर काम करने के लिए भेजनें लगीं थीं।

    गोखले आज रिहा होकर घर आ चुका था। उसके घर आने की खबर प्राइवेट बैंक वालों को लग चुकी थी । रात आठ बजे बैंक के एजेंट लोग घर पर आ धमके ।
‘‘..गोखले !...........गोखले !.......।‘‘
‘‘हॉ साहब बताओ ?‘‘ गोखले ने सहमें हुए अन्दाज में पूॅछा।
‘‘ क्यों मेरी नौकरी खाने पर तुले हो?मेरा मैनेजर अब मुझे नहीं बख्सेगा। या तो पैसा दो या फिर अपना खेत दो। अगर कोर्ट  कचहरी से देना चाहते हो तो वह भी बताओ। तुम्हारी जमीन तो जायेगी ही ऊपर से जेल भी जााना पड़ेगा। ;;
एक बार फिर गोखले के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
‘‘नहीं साहब......... जेल नहीं जाऊॅगा। क्या करूं पन्द्रह दिन तक जेल में रहने से मेरी खेती खराब हो गयी है। मैं बहुत परेशान हूॅ साहब। थोड़ मोहलत जरूर चाहिए। आपका एक एक पाई अदा कर दूंगा। ‘‘
‘‘नहीं गोखले तुम गलत बोलते हो।आज मुझे हर हालत में रकम चाहिए।
 ‘‘आज तो मेरे पास कुछ भी नहीं है साहब।‘‘
‘‘है क्यों नहीं ,तुम्हारा खेत तो कुछ हम कुछ सरकारी बैंक वाले लेंगे। मगर अभी तो तुम्हारी भैंस तो है ही इसे ले जाऊंगा । बोली लगने पर जो भी कीमत वसूल होगी वह तुम्हारे खाते में जमा हो जायेगी ।‘‘
‘‘नहीं साहब भैंस तो नहीं दे पाउंगा।‘‘
‘‘तुम्हारी औकात है जो तुम हमें रोक लोगे । जाओ तुम थाने में बताओ मैं तो ले जा रहा हूॅ।‘‘
       गेाखले जानता था कि ये लोग एजेंट कम गुण्डे अधिक हैं। मुॅह लगने का मतलब था मार पीट होना। देखते  देखते उन लोगों ने भैस खोल लिया । बार बार मुड़ मुड़ कर गोखले की भैंस गोखले और रमा बाई को निहार रही थी।रमा और गोखले का कलेजा फटा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई गोखले और रमा बाई के मुॅह पर पट्टी बॉधकर उनके बच्चे का अपहरण कर रहा हो।शायद भगवान ने उनकी ओर से मुॅह फेर लिया हो। अब तो कोई चारा भी नहीं है। जमीन की कुड़की आज नहीं तो कुछ महीनों तक में जरूर हो जायेगी ।जेल जाने से फसल तो खराब हो ही चुकी है। महाजन अब मदत नहीं करेगा । कैसे चलेगी जिन्दगी। अखिर ऐसे किसानों को कौन मदत करता है। सब मतलब के प्यारे हैं।

         रात दो बज चुके थे । गोखले की नींद गायब थी । आज वह बहुत भावुक हो चुका था। उसकी ऑखों से ऑशू बन्द होने का नाम नहीं ले रहे थे। रमा बाई ने बहुत समझाया , बेटे ने बहुत समझाया पर वह नहीं सो सका । धीरे धीरे रमाबाई और बच्चे को सवेरे की ठंढ़ी हवाओं ने झपकी दे दी थी । अब भी गोखले की ऑखों से नीद कोसों दूर थी।

        सवेरे पॉच बजे रमा की ऑख खुल गयी । गोखले बिस्तर से गायब था। रमा ने सोचा शायद खेत की तरफ गये होंगे । थोड़ देर बाद धापोडकर के लड़के ने खबर दी -
‘‘चाची !............ चाची! ....दौड़ो ...दौड़ो ...गजब हो गया।‘‘
‘‘क्या हो गया रे ?‘‘ रमा बाई ने पूछा।
‘‘गोखले चाचा पीछे वाली बाग में रस्सी से झूल गये हैं । ‘‘
रमा बाई के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी । एक लम्बी सी चीख के साथ बेहोश हो गयीं । लोगों ने पानी का छींटा मार कर होश में लाया । मॉ बेटे का चीखना चिल्लाना रोना जारी था। दस बजे तक थानेदार साहब आ गये । लाश उतारी गयी जेब से कोई सोसाइट नोट नहीं मिला । गॉव वाले सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे । महाजन जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे कि तहसीलदार ने जेल भेजा था इस लिए उसने आत्महत्या कर ली है। गॉव वाले अन्दर ही अन्दर खुश भी हो रहे थे । उन्हें फिर उम्मीद थी कि विपक्षी दल जन आन्दोलन के लिए शंखनाद करेंगे। फिर गॉव में विकास की गंगा बहेगी। सबके कर्जे माफ होंगे। लेकिन इस बार सब कुछ अलग था। कोई विपक्षी दल नहीं आया। चुनाव का माहौल नहीं था। नहीं हो सका कोई शंखनाद। नेताओं के लिए यह एक सामान्य घटना के अतिरिक्त कुछ नहीं था।



                                      प्रस्तुति।

                                              नवीन मणि त्रिपाठी
                                                 जी0वन0/28
                                           अरमापुर इस्टेट कानपुर
                                                 उ0प्र0

21 टिप्‍पणियां:

  1. थोड़ी लंबी है, पर विचारोत्तेजक।

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  2. कड़वा सच कहती कथा,,,,,
    सार्थक एवं सशक्त लेखन हेतु बधाई.

    सादर
    अनु

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  3. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-907 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  4. बढ़िया और सच्चाई के करीब ! देश के नागरिको को जागना होगा नहीं तो सिर्फ पछताओ !

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  5. कड़वी सच्चाई कों बेबाक ... बिना किसी लगावत के लिखा है ...
    सोचने कों मजबूर करती हैं ऐसी कहानियां ...

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  6. किसानों की हालत पर सर्थक कहाँनी ....
    हमारे समाज का यही रूप हो गया है ..

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  7. gareeb kisaan ka dard dikhati ak marmik rachna...
    ye hi hakikat hai...

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  8. भाग्य विधाता देश के, खुद की लेते जान।
    देख किसानों की दशा, चुप क्यूँ है संविधान॥

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  9. क्या कहा जाये ऐसे परिस्थितियों पर...

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  10. yatharth ke dharatal par likhi bahut hi samvedansheel kahani.. sabko apni-apni padi rahti hai ...

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  11. bahut hi marmik avam sachchai se bharpur prastutiman ko chhi gai .
    samaaj ka asli rooo dikhati aapki post bahut bahut sateek avam sarthakta se bhri hui hai0000
    dhanyvaad
    aabhaar sahit
    poonam

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  12. बोडालकर ओर गोखले , का दर्द ओर नियति किसानो की दुर्दशा... राजनीति की बदबूदार रोटिया सेकते राजनेता भारत की आत्मा गांव में ओर पेट किसान के खलिहान पर.... केवल नारे रह गए कितना दुखद है है ये सब.......शसक्त चिंतनीय आलेख...

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  13. samajik samasya ko ujagar karti hui kahani ----------bahut hi sahi samasya ko uthaya hai aapne ---------

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  14. व्यवस्था के छल छद्म का जीवंत दसतावेज़ है यह सत्य कथा .बेहतरीन सीधी कथा व्यवस्था का मुखोटा नौचती है .बधाई स्वीकार करें .

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  15. समाज का एक दर्दनाक सत्य....विचारणीय आलेख..

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  16. एक सच ... जिसे शब्‍दों में उतारकर भावमय कर दिया ... उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार

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  17. राजनीति के छल-प्रपंच ने किसानों को सबसे अधिक सताया है, रुलाया है। आज मजदूर भी गरीब नहीं हैं, गरीब और लाचार हैं केवल किसान।

    ज्वलंत समस्या पर लिखने के लिए आभार त्रिपाठी जी।

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