तीखी कलम से

रविवार, 23 जून 2013

हे केदार नाथ

हे केदार नाथ ,
तुम कैसे भगवान ?
हम तुमसे मिलने आए थे ,
तुम्हारा आशीर्वाद लेने |
आस्था के सागर मे डूब कर
 तुम्हारा  प्रसाद लेने |
पर यह क्या किया तुमने ?
क्या बिगाड़ा था हम सब ने ?
यदि आप विनाश के स्वामी हैं |
पूर्ण अंतर्यामी हैं |
पापियों को छोड़ कर
 अपने ही भक्तों का विनाश कर डाला !
महिलायें पुरुषों और अबोध बच्चों का
 संहार कर डाला !
निर्दोषों की लाशों से भर
  लिया अपना आँगन |
आसुओं के शैलाब से डूब गया वतन |
आश्चर्य .....महान आश्चर्य !
तुम मौन होकर अपने भक्तों को ,
मरते हुये देखते रहे ?
और वे तुम्हें आखिरी सांस तक पुकारते रहे |
कहाँ चली गई  तुम्हारी दया दृष्टि ?
कहाँ चली गई  तुम्हारी अनंत शक्ति ?
भक्त के साथ विश्वाश घात हुआ है |
शायद तुमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है |
एक ऐसा पाप ,..।
जिसे तुम अपने आप को
 शायद ही माफ कर सकोगे |
ख़ुद को  कैसे भोला कह सकोगे ?
भक्तों को नहीं बचा सकते थे
शक्ति का आभास नहीं करा सकते थे |
भक्तों से पहले तुम्हें बह जाना चाहिए था |
तुम्हारा भी मंदिर
 टुकड़ों मे बिखर जाना चाहिए था |
पर ये क्या आज के बाबाओं की तरह ,
आप भी हो गए ?
चेलों के पैसों से प्रमाद मे डूब गए ?
तुम्हारी इस शक्ति की दयनीय अवस्था पर |
कौन करेगा अब विश्वास तुम पर ?
तुम से ज्यादा भोला तो ,
आज का इंसान है |
तुमसे शक्ति शाली तो उसका ईमान है |
वह आज भी ....।
तुम्हें व तुम्हारे मंदिर के बचने पर ,
गर्वान्वित है |
तुम्हारी महिमा पर आज भी आशान्वित है |
पर याद रखो !
प्रकृति के सिद्धान्त मे यदि कर्मफल शाश्वत है |
तो तुम्हारे लिए भी दंड यथावत है |
आडंबर पाखंड का  दंड भोगना पड़ता है |
मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||

                                                     नवीन

12 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान को भी डूबना पड़ता है ..... सार्थक बात ... सुंदर रचना ।

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  2. बहुत ही वाजिब सवाल किये हैं त्रिपाठी जी आपने. सुन्दर रचना.

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (24-06-2013) को अनसुनी गुज़ारिश और तांडव शिव का : चर्चामंच 1286 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. प्रकृति हुयी क्यों क्रोधमयी जब,
    घोर हलाहल कंठ अवस्थित।

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  5. घोर हलाहल कंठ अवस्थित, ताहू पे भोला रह्यो भूल्यो
    प्रकृति माता अरु आदि-शक्ति तब क्रुद्ध हुई धीरज टूट्यो|
    जलधार बनी तब आई प्रलय,इक छोर जटा को जब छूट्यो |
    छोटे बड़े या बोध-अबोध, भयो पूरौ पाप घडा फूट्यो |

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  6. आडंबर पाखंड का दंड भोगना पड़ता है |
    मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||

    बहुत बढ़िया,लाजबाब प्रस्तुति,,,

    Recent post: एक हमसफर चाहिए.

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  7. आज सबके मन में शंकाएं हैं ,क्षोभ है ,अनेक प्रश्न हैं.आपके प्रश्न जन मानस का प्रतिविम्ब है

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  8. ईश्वर की और से मैं निरुत्तर हूँ !!
    पूछा गया हर प्रश्न वाजिब है
    पता नही ये संघार पाप था या बदला
    पर प्रकृति भी शर्मिन्दा होगी अपने इस कृत्य पर

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  9. अलग दृष्टि से देखा है इस त्रासदी को ... पर इंसानी कार्य की सजा तो मिलनी है ... चाहे किसी निर्दोष को मिले पर वो ऊपर बैठा सब जानता है ....

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  10. बहुत सटीक प्रश्न उठाया है...लेकिन जब इंसान प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है तो उसका दुखद परिणाम भी अवश्यम्भावी है...

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  11. आडंबर पाखंड का दंड भोगना पड़ता है |
    मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||
    anupam bhav sanyojan ke saath, saarthak baat kahti rachna...best wishes.

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  12. bahut hi sundar rachna par jab tak ham prkrti se chedchad karte rehenge tab tak ye vinash leela hoti rehegi

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