तीखी कलम से

सोमवार, 1 जुलाई 2013

फिर भी बड़े गुमान मे दिखता है तिरंगा

हो  जाए  फ़रेबों  का  ना  व्यापार  ये मंदा |
होने  लगा  ईमान  का  अखबार  मे धंधा ||

मंदिर व  मस्जिदों  मे  वे  खैरात  कर  रहे |

आया जो जलजला तो मिला मौत का फंदा||

मठ  के हैं हुक्मरान वे  दौलत की निशानी |

इंसानियत के नाम पर  निकला नहीं चंदा ||

भूखा  हुआ इंसान भी  बेबस  है इस  कदर |

लाशों को नोच नोच के मजहब किया गंदा ||

वे रहनुमा हैं उनका भी अब काम अहम है |

इनकी  करें  निंदा कभी उनकी करें  निंदा ||

इज्जत भी बचाने मे है मोहताज आदमी |

करने लगा है  वक्त  भी  इंसान  को  नंगा ||

कचरे मे जहर फेकते  क्यों उसकी  राह में|

बर्बाद ना  कर दे  तुम्हें इस बार  भी गंगा ||

अब  दौर   है  चुनाव   का  सेकेंगे  रोटियाँ |

इस शहर मे होगा कहीं  इस बार भी  दंगा ||

प्रतिभा है दर किनार यहाँ वोट की खातिर |

फिर भी बड़े गुमान मे दिखता  है तिरंगा ||

                                         Naveen Mani Tripathi

11 टिप्‍पणियां:

  1. मठ के हैं हुक्मरान वे दौलत की निशानी |
    इंसानियत के नाम पर निकला नहीं चंदा
    अब दौर है चुनाव का सेकेंगे रोटियाँ |
    इस शहर मे होगा कहीं इस बार भी दंगा
    सार्थक सामयिक अभिव्यक्ति
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. मंदिर व मस्जिदों मे वे खैरात कर रहे |
    आया जो जलजला तो मिला मौत का फंदा||

    मठ के हैं हुक्मरान वे दौलत की निशानी |
    इंसानियत के नाम पर निकला नहीं चंदा ||

    भूखा हुआ इंसान भी बेबस है इस कदर |
    लाशों को नोच नोच के मजहब किया गंदा ||---सही और सटीक अभिव्यक्ति!
    latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )

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  3. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (03-07-2013) के .. जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम .!! चर्चा मंच अंक-1295 पर भी होगी!
    सादर...!
    शशि पुरवार

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  4. dulat ke pujari hai karte hai rajniti lasho ke dher par bethe hai or karte hai danga mjhab ko mjhab se ladne ka hai kaam in hukumrano ne kar diya gulam

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  5. मठ के हैं हुक्मरान वे दौलत की निशानी |
    इंसानियत के नाम पर निकला नहीं चंदा ||

    ...बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  6. मठ के हैं हुक्मरान वे दौलत की निशानी |
    इंसानियत के नाम पर निकला नहीं चंदा |..

    तीखे और चुटीले शेर ... पर यथार्थ लिखा है .... हर शेर लाजवाब है ...

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  7. व्यथा को बहुत खूबसूरत लफ़्ज़ों में ग़ज़ल की शकल दी आपने त्रिपाठी जी. बहुत बढ़िया लगा.

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  8. मठ के हैं हुक्मरान वे दौलत की निशानी |
    इंसानियत के नाम पर निकला नहीं चंदा ||

    ..............सही और सटीक अभिव्यक्ति!

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  9. भूखा हुआ इंसान भी बेबस है इस कदर |
    लाशों को नोच नोच के मजहब किया गंदा ||


    खरी बात कहती सार्थक गज़ल

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