तीखी कलम से

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

दौलते मुल्क पे कब्ज़ा हुआ अय्याशों का

सच की चिनगारी से, हस्ती  तबाह कर देंगे |
हड्डियां  बन  के हम फीका कबाब कर देंगे ||
दौलते  मुल्क  पे  कब्ज़ा  हुआ अय्याशों का |
वक्त  आने  पे  हम  सारा  हिसाब  कर  देंगे ||

हम  शहीदों  की  हसरतों  पे  नाज  करते हैं |
उनकी जज्बात को हम भी सलाम करते  हैं ||
वतन  को  बेचने  वालों  जरा  संभल  जाना |
तुम्हारे  हश्र   का  अहले  मुकाम  रखते  हैं ||

तुमने  लूटा  है  वतन  हमको  बनाना  होगा |
देश   के   दर्द   को  आँखों में सजाना होगा ||
भूख से  रोती  जिंदगी  को  मौत  दी  तुमने |
धन  जो  काला  है  उसे  देश में लाना होगा ||

वो  हुक्मराँ  हैं , हम  पलकें  बिछाए  बैठे हैं |
बात  जो  खास  है , उसको  छिपाये  बैठे  हैं ||
वो   रिश्वतों   के  ,बादशाह    कहे   जाते  हैं |
एक   दूकान   वो  , घर   में  लगाये  बैठे  हैं ||

उनके मकसद के चिरागों को जलाते क्यूँ हो |
बचेगा   देश , भरोसा   ये  जताते   क्यूँ   हो ||
जो  कमीशन  में  खा  गये  हैं फ़ौज की तोपें |
उनकी  बंदूक  से  उम्मीद  लगाते   ,क्यूँ  हो ||

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  2. अति सुन्दर रचना. उम्मीद है सारे सपने शीघ्र साकार होंगे और देश का नव-निर्माण होगा.

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  3. सच लिखा है ... ऐसे हुक्मरां होंगे तो क्या होगा देश का ...

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