तीखी कलम से

रविवार, 27 अप्रैल 2014

मुक्तक


मुक्तक


वो  सहादत  को  फरेबी  करार  कर  देंगे ।
अब शहीदों को भी वो  दागदार  कर देंगे ।।
सारी तहजीब डस गयी है सियासी नागिन ।
वतन  की शाख को  वो तार तार  कर देंगे ।।


उनके  ऐलान  पे वो  ईद मानाने  निकले ।
सजा ए रेप को वो दिल से भुलाने निकले ।।
वो  दरिंदो  के देवता  का  असर रखते हैं ।।
हादसे  होंगे नहीं  !अब वो ज़माने निकले ।।


ये तो दीवार का  ,रश्मो -रिवाज रखते हैं ।
नफरतो के लिए बेहतर मिजाज रखते है ।।
कैसे  इन्सान को इन्सान  से काटा  जाए ।
मुहब्बतों  को मिटाने  में  नाज  रखते हैं ।।


ये शिगूफों को को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
एक तीखा सा जहर दिल में डाल देते हैं ।।
कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
अमन -शुकूँ  का  कलेजा निकाल लेते हैं ।।

                      नवीन

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये शिगूफों को को तो बस यूँ उछाल देते हैं ।
    एक तीखा सा जहर दिल में डाल देते हैं ।।
    कितने शातिर हैं ये कुर्सी को चाहने वाले ।
    अमन -शुकूँ का कलेजा निकाल लेते हैं ।।..
    बहुत खूब ... सही नब्ज़ पकड़ी है आपने इन नेताओं की ... पर जनता ये बात कभी नहीं समझ पाती ... या समझ कर भी निहित स्वार्थ हावी हो जाता है ...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (29-04-2014) को "संघर्ष अब भी जारी" (चर्चा मंच-1597) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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