तीखी कलम से

रविवार, 20 अप्रैल 2014

दर्द


दर्द


जब दरिंदों ने उसको आग लगाई होगी ।
उंगलियाँ लोगों ने उस पे ही उठाई होगी ।।


खास अंदाज में थिरके थे उसके पाँव बहुत ।
काँच के टुकड़ों पे घुघरू को बजाई होगी ।।


जिस्म मजबूरियों के नाम बिका करती है ।
बड़ी मुश्किल से दुपट्टे को हटाई होगी ।।


जार के गोश्त को खाए सफ़ेद पोश फकत ।
वो तो दातों तले ऊँगली को दबाई होगी ।।


यहाँ इन्सान को इन्सान खा गया देखो ।
दावते अस्मते गिद्धों ने उडाई होगी ।।


इस तिजारत सी जिन्दगी को जी रही अबला ।
किसको फुरसत यहाँ मुद्दों की लडाई होगी ।।


मौत का सौदा कुर्सियों से कर  गये नेता ।
कैसे कह दूं कि उसके साथ भलाई होगी ।।


बयान जब सुना कातिल के रहनुमाओं का ।
वह तो बेबस खड़ी आंसू से नहाई होगी ।।


ये हैं शैतान द्रौपदी का चीर खींच गये ।
मुल्क में जंग बड़ी फिर से बुलाई होगी ।।

                 -      नवीन मणि त्रिपाठी

8 टिप्‍पणियां:

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  2. बेहतरीन भावों कि लड़ियाँ लाज़वाब

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  3. शास्त्री जी हार्दिक आभार । चर्चा मंच में मेरी रचना को शामिल करना मेरे लिए निश्चय ही महत्वपूर्ण है ।

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  4. यहाँ इन्सान को इन्सान खा गया देखो ।
    दावते अस्मते गिद्धों ने उडाई होगी ।,...
    हर शेवर जैसे कडुवे सच कि बयानी है ... बहुत ही उम्दा सोचने को मजबूर करती गज़ल ...

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  5. बहुत खूब ... एक शिकवा है .... बड़े ही चटख रंग में लिखी गयी है ... शब्द दिल में और फॉण्ट आँखों में चुभते हैं |

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  6. खास अंदाज में थिरके थे उसके पाँव बहुत ।
    काँच के टुकड़ों पे घुघरू को बजाई होगी ।।

    वाह बहुत खूब

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  7. तारीफ़ के लिए शब्द नहीं हैं. क्या जोरदार ग़ज़ल कही है आपने.

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