तीखी कलम से

बुधवार, 25 जून 2014

बाप

बाप

एक दायित्व
जीवन की महत्वपूर्ण चुनौती
सफल  असफल की
संवेदन शील कसौटी
सब कुछ निर्भर हो जाता है
बच्चो की तरक्की पर
उनकी उपलब्धि पर
सारा मान सम्मान
सामाजिक अभिमान
उपदेशात्मक ज्ञान
अनुभवों की शान
सब कुछ शून्य बन
उपहास की क्रीड़ा कर जाती है
जब बच्चो की प्रगति
पीड़ा दे जाती है ।।

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बाप समाज के
विष दंशों को
सहने के लिए विवश होता है।
अंतर्वेदना में निहित
 प्रत्येक दिवस होता है ।
चेहरे की मुरझाई झुर्रियां
हारा हुआ व्यक्तित्व
सब कुछ गवाही देते है
अनसुलझा उत्तर दायित्व ।।
मूक प्रस्तर की तरह
भविष्य को निहारता हुआ
जीवन की कडियों को पिरोता हुआ।
समय का कुचक्र
उसे लूट जाता है ।
और अंततः उसके
सपनो का महल बिखर कर
टूट जाता है ।।

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कौन समझेगा
बाप की अनुभूतियों को
मौन स्वर की सिसकियों को
जीवन के एक पड़ाव पर
उम्र के ठहराव पर
लुप्त हो जाती हैं लोगों की संवेदनाये
घर कर जाती है
स्वार्थी भावनाए
सब बीबी बच्चों में मस्त ।
होने लगता है
संस्कारों का सूरज अस्त।
सबको अपने हिस्से की अपेक्षा ।
बाप के म्रत्यु की प्रतीक्षा ।।

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                              नवीन

7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय गाफिल जी फेसबुक पर आप कहाँ मिलते हैं ? मैंने आपको ढूढ़ा पर आप नहीं मिले कृपया लिंक भेजें ।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नायब सूबेदार बाना सिंह और २६ जून - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बढ़िया रचना व लेखन , आदरणीय नवीन भाई धन्यवाद !
    ब्लॉग जगत में एक नए पोस्ट्स न्यूज़ ब्लॉग की शुरुवात हुई है , जिसमें आज आपकी ये पोस्ट चुनी गई है आपकी इस रचना का लिंक I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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