तीखी कलम से

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

इन शहीदों का मुकम्मल सलाम बाकी है

इन  शहीदों  का , मुकम्मल  सलाम  बाकी  है ।
मुल्क  के  पन्नों  में ,अहले  मुकाम  बाकी  है ।।

जिसने फंदों से मुहब्बत की मौत  की खातिर ।
उनकी जज्बात पे,  लिक्खा कलाम  बाकी है ।।

चिता  शहीद  पे  मेलों   का  जिक्र  कौन  करे ।
अब  तो  चादर  भी, कब्र पर तमाम  बाकी है ।।

हुए   हलाल   तो  दीवाने  ए  हिन्द  खूब  यहाँ ।
तमाशबीन ,  वतन    का    हराम    बाकी   है ।।

मजहबी   साजिशें    रचने   लगे   सियासतदा ।
सहादतों   का   ये , कैसा    ईनाम   बाकी   है ।।

जश्ने  आजादी   गुलामी  को   मिटाने पे  मिली।
मुफलिसी  दौर  में , जीता    गुलाम   बाकी  है।।

कौम  से   कौम  लड़ाते  वो  आज मकसद  से।
अमन   शुकूँ   का ,यहाँ  पर  पयाम  बाकी  है ।।


                  -नवीन मणि त्रिपाठी

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर |

    अमर शहीदों को शत शत नमन

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज गुरुवारीय चर्चा मंच पर ।। आइये जरूर-

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  3. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 14/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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  4. नमन शहीदों को. ओजमय ग़ज़ल बनी है त्रिपाठी जी.

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  5. बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  6. जश्ने  आजादी   गुलामी  को   मिटाने पे  मिली।
    मुफलिसी  दौर  में , जीता    गुलाम   बाकी  है।..wah sir behtreen. Kbhi www.sonitbopche.blogspot.com bhi visit kre aapka margdarshan apekshit hai.

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  7. सुन्दर गजल...स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...

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