तीखी कलम से

रविवार, 17 अगस्त 2014

प्रणय के नाम



तुम्हारी झील सी आँखों  में, अक्सर खो चुके हैं हम ।
प्यास जब भी हुई व्यकुल तो बादल बन चुके हैं हम।।
ये अफसानों  की है दुनिया, मुहब्बत  की कहानी है ।
सयानी  हो  चुकी  हो  तुम ,सयाने हो  चुके  हैं  हम ।।


कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
ये  दरिया  आग  का  है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
समा  देखी  नहीं  जिसने, वो परवानो  को क्या जाने ।।


तेरे  जज्बात  के  खत  को , अभी  देकर गया  कोई ।
दफ़न    थीं   चाहतें  ,उनको   भी  बेघर  गया  कोई ।।
हरे  जख्मों के  मंजर  की , फकत इतनी निशानी है ।
हमें   लेकर   गयी   कोई,  तुम्हे   ले कर गया   कोई ।।


मिलन  की  आस को लेकर, वियोगी  बन  गया था मै।
ज़माने  भर  के लोगों का , विरोधी  बन  गया  था मै ।।
रकीबो  के  शहर   में  ,जुल्म   के  ताने   मिले  इतने ।
बद चलन बन गयी थी तुम , तो भोगी  बन गया था मै।।


                  -नवीन मणि त्रिपाठी
(सारे तथ्य काल्पनिक हैं
मुक्तक में मेरे अथवा किसी
अन्य के जीवन से कोई
 सरोकार नहीं है ।)

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की राह में आने वाली हर बात को बखूबी कह दिया है आपने.

    जवाब देंहटाएं
  2. कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
    मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
    ये दरिया आग का है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
    समा देखी नहीं जिसने, वो परवानो को क्या जाने ।।
    ...वाह! बहुत खूब निकले हैं जज्बात!

    जवाब देंहटाएं
  3. आप सभी आदरनीय को आभार के साथ धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
    मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
    ये दरिया आग का है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
    समा देखी नहीं जिसने, वो परवानो को क्या जाने ।।
    -सुन्दर ,पर यह सब मुहब्बत कर के ही अनुभव होता है

    जवाब देंहटाएं