तीखी कलम से

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

वैचारिक प्रदूषण

हर ओर बलात्कार
नृशंस हत्याव्ओ से हाहाकार
गुंजित दिशाएं 
नारियो की चीख से।
फिर भी हम नही जाग पाए 
गहरी नीद से 
क्या हो गया भारतीय समाज को ?
कौन मिटा रहा 
इसके गौरव पूर्ण इतिहास को ?
चीर हरण में युधिष्ठिर की भांति
अखबारों की सुर्खियों पर
हम मौन हैं ।
हम इतना भी नहीं सोच पाते
सभ्यता संस्कृति के 
लुटेरे कौन हैं।
पाश्चात्य सभ्यता .....अँधानुकरण ।
युवाओं की जेब में 
ब्लू फिल्मो का संवरण
उत्तेजित करने वाले 
वस्त्रो का आवरण
महत्वाकांक्षाओं का भरण 
नैतिकता का क्षरण
रोज लुट रहा समाज का आभूषण
एक खतरनाक वायरस की तरह
फ़ैल रहा 
वैचारिक प्रदूषण।
हार गये तुम ?
उठो और देश बचाओ।
इस से पहले निगल जाये 
तुम्हारी स्मिता को ।
बची खुची सभ्यता को ।
अपनी खोई सभ्यता अपनाओ।
वैचारिक प्रदूषण भगाओ ।
वाचारिक प्रदूषण भगाओ।।

        -नवीन मणि त्रिपाठी

4 टिप्‍पणियां: