तीखी कलम से

शनिवार, 23 अगस्त 2014

ये वक्त देखता रहा सहमा हुआ शजर

**गजल **

जज्बात  ए  गजल  उनकी  हुई आज बे  असर।
भटका   बहर  रदीफ़  काफिया   में   उम्र  भर ।।


वो    कायदे    वसूल    बताने    लगे  हैं    खूब ।
जंग   ए   शिकस्त   जो   हमें    करते रहे  नजर।।


हैरान   माफिया   है   कलम    का    ठगा   हुआ।
जब  असलियत  की  रूबरू   चर्चा  हुई   खबर।।


पत्ते   भी    चले    दूर    खिंजा   ए  बहार    में ।
ये   वक्त    देखता    रहा    सहमा  हुआ शजर।।


मासूम   बे    गुनाह   पर   पड़ने  लगी   निगाह ।
उनकी   नियत   ख़राब   है   डरने  लगा   शहर।।


कुछ   तो   जरुर  है  यहाँ   खामोशियों  में  अब।
बेटी   गरीब    की   थी   दरिंदों    का   है  कहर।।


अब मजहबी कातिल की बात कर ना तू "नवीन"।
दीवार   ए   मुखबिरी  से   साँस  जायेगी   ठहर ।।

         -  नवीन मणि त्रिपाठी

11 टिप्‍पणियां:

  1. जैसे ख़ामोशियाँ बोलने लगी - लिख गईँ जज्बात ए गजल!

    जवाब देंहटाएं
  2. पत्ते भी चले दूर खिंजा ए बहार में ।
    ये वक्त देखता रहा सहमा हुआ शजर।।
    .... वाह

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  4. अब मजहबी कातिल की बात कर ना तू "नवीन"।
    दीवार ए मुखबिरी से साँस जायेगी ठहर

    सच्चाईयों को समेटे जबरदस्त ग़ज़ल है.

    sachhai

    जवाब देंहटाएं
  5. मासूम बे गुनाह पर पड़ने लगी निगाह ।
    उनकी नियत ख़राब है डरने लगा शहर।।..
    बहुत खूब ... हर शेर कुछ न कुछ बताता हुआ इस ज़माने को ... लाजवाब शेर ...

    जवाब देंहटाएं