तीखी कलम से

शनिवार, 15 नवंबर 2014

बगदादी के बाद

  बगदादी के बाद
                                                -नवीन मणि त्रिपाठी

विश्व के बदलते परिदृश्य में आईएसआईएस का मुखिया अबू बकर अल बगदादी मारा गया है या नहीं मारा गया है यह शोध का विषय बन गया है ।आने वाले कुछ दिनों के बाद प्रमाण सहित सच सबके सामने होगा ।आई एस आई एस ने भी ऐलान कर दिया है कि वो बहुत जल्द बगदादी के उत्तराधिकारी का ऐलान कर देगा। ट्विटर पर ISIS से जुड़ी वेबसाइट ने बगदादी की मौत का ऐलान किया। मीडिया में आ रही खबरें बता रही हैं कि  बगदादी और उसके टॉप कमांडर इराक के मोसूल के पास जा रहे थे, उसी दौरान उन पर हवाई हमला हुआ।

अल-इत्तेसाम मीडिया को इस्लामिक स्टेट इन इराक और सीरिया यानि आईएसआईएस से जुड़ा माना जाता है। उसने आज ट्वीट किया कि बहुत जल्द हम खलीफा अबु बकर अल-बगदादी की मौत की जानकारी तफ्सील से देंगे। साथ ही इस्लामिक स्टेट के नए खलीफा के नाम का खुलासा भी कर देंगे।

इससे पहले इंग्लैंड के अखबार डेली टेलीग्राफ को इराक के सुरक्षा अधिकारी हाशिम अल हाशिमी ने बताया कि हवाई हमले में बगदादी का एक बहुत ही खास सहयोगी एलीफ्री मारा गया है। इस हमले में आईएसआईएस की दस गाड़ियां पूरी तरह से तबाह हो गईं। बगदादी एलीफ्री से कभी भी अलग नहीं रहता था। बगदादी जहां भी जाता था एलीफ्री उसके साथ ही जाता था। दोनों हमेशा साथ ही रहते थे।  रिश्तेदार ने एलीफ्री की मौत की तस्दीक की है। जाहिर है इस हमले के दौरान बगदादी भी उसके साथ ही रहा होगा।

इराकी सेना के हवाले से कई अखबारों में ये खबर छपी है कि इराक-सीरिया की सीमा के पास अल-कायम इलाके में बगदादी के काफिले पर हवाई हमला हुआ। घायल बगदादी को अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल को पूरी तरह से खाली करा लिया गया था। खबर के मुताबिक बगदादी के लिए आईएसआईएस लड़ाकों ने खून दान करने वालों की भी मांग की थी। पूरी सम्भावना है की बगदादी मारा जा चुका है ।  इंतजार है तो सिर्फ अमेरिकी और ईराकी सरकार की घोषणाओं का परन्तु ये घोषणाएं लगता है डी एन ए जाँच के बाद ही हो सकेंगी । जाँच के लिए बगदादी का मृत शरीर चाहिए वह अभी भी आई एस आई एस के कब्जे में ही है । अब यह आई एस आई एस संगठन ऐसे मोड़ पर है जहाँ से यह अलकायदा की तरह शक्तिहीन अवस्था को प्राप्त कर सकता है । नेतृत्व की लड़ाइयाँ भी मुखर होंगी साथ ही इनका मनोबल गिरना भी स्वाभाविक ही है । आइये एक निगाह बगदादी पर डालते हैं

       अबू बक्र अल बग़दादी का जन्म १९७१ में ईराक़ के सामर्रा नगर में हुआ।अली बदरी सामर्राई, अबू दुआ, डाक्टर इब्राहीम, अल कर्रार और अबू बक्र अलबग़दादी आदि कई इसके उपनाम हैं। यह पीएचडी हैं। इसके पिता का नाम अलबू बदरी हैं जो सलफ़ी तकफ़ीरीविचारधारा को मानते हैं। अबू बक्र बग़दादी की शुरुवात धर्म के प्रचार साथ ही प्रशिक्षण से हुआ। लेकिन जेहादी विचारधारा की ओर अधिक झुकाव रखने के कारण वह इराक़ केदियाला और सामर्रा में जेहादी पृष्ठिभूमि के केन्द्रों में से एक केन्द्र के रूप में ऊभरा।

माना जाता है, अल बगदादी सामर्रा के निकट इराक में 1971 में पैदा हुआ हैं।उसने बगदादके इस्लामी विज्ञान विश्वविद्यालय से इस्लामी विज्ञान में मास्टर की डिग्री और पीएचडी अर्जित किया।जेहादी वेबसाइटों का दावा है कि वह प्रतिष्ठित परिवार का पढ़ा-लिखा इमाम है। वह 2003 में इराक में अमेरिकी घुसपैठ के बाद बागी गुटों के साथ अमेरिकी फौज से लड़ा था। वह पकड़ा भी गया और 2005-09 के दौरान उसे दह्निणी इराक में मेरिका के बनाए जेल कैंप बुका में रखा गया था। और 2010 में इराक के अलकायदा का नेता बन गया।



आई एस आई एस ( इस्लामिक स्टेट इन ईराक एंड सीरिया ) आज दुनिया का सबसे खतरनाक और क्रूर संगठन के  रूप में अपनी पहचान बना चूका है । आज अमेरिका के लिए  और सम्पूर्ण मानवता के लिए यह संगठन सबसे बड़ा खतरा बन चूका है । हाल ही में भारत सरकार की ओर से कुछ बयान आए हैं जिसमे कहा गया कि देश मुसलमान आतंकियों के बहकावे में आने वाले नहीं हैं। यह बयान भी उन स्थितियों की समीक्षा के उपरांत आया है जब पता चला कि देश के कुछ नवयुवक आई एस आई एस में भर्ती हो गये हैं और वे वहां उनके सहयोग में युद्ध लड़ रहे हैं । धार्मिक उन्माद के सहारे आतंकवाद का राज कायम करने की साजिश का खेल आई एस आई एस के आतंकियों के द्वारा खेला जा रहा है । खबर यह भी है कि अब अलकायदा का एक बड़ा गुट भी आई एस आई एस में शामिल हो चुका है । कुछ ही दिन पूर्व की बात है पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के लाहौर स्थित फार्म हाउस से मात्र 15 किलो मीटर दूर आई एस आई एस आतंकी समूह को समर्थन करने वाले पोस्टर स्टीकर पाए गए हैं । वहां के अधिकारियों ने खतरनाक आतंकी संगठन आई एस आई एस की उपस्थिति के लिए चिंताए व्यक्त कर चुके  है  । लाहौर पुलिस ने जांच अभियान शुरू कर दिया है और आई एस आई एस के समर्थन करने वाले पोस्टरों के संदिग्धो को हिरासत में लेना प्रारंभ कर दिया है ।शरीफ के रायविंड आवास से 15 किलो मीटर दूर नबाब नियाज बेग में " खिलाफत मुबारक के उम्मा " लिखे पोस्टर और स्टीकर देखे गए हैं । लाहौर में कैनाल रोड के पास आई एस आई एस के समर्थन में रंगी दीवारे भी दिखीं । वहाँ पंजाब पुलिश के उप महा निरीक्षक हैदर अशरफ के अनुसार नगर में आई एस आई एस के समर्थन में पोस्टर लगाने वालो के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो चुकी है । एक ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारी के अनुसार तहरीक ए तालिबान सिपह ए सहाब, लश्करे झंगवी और कुछ अन्य सुन्नी संगठनो  के हाथ होने की सम्भावना है।

       इसी तरह भारत में भी  इंडियन मुजाहिद्दीन के साथ अलकायदा और आई एस आई एस के लिंक की खबरें चर्चा में रहती हैं । अलकायदा का एक गुट आई एस आई एस के युद्ध लड़ रहा है । अभी कुछ दिन पूर्व  अलकायदा प्रमुख अल जवाहिरी के द्वारा भारत को धमकी दी गयी इसे नजर अंदाज कारन करना उचित नहीं होगा ।

      भारतीय प्रधानमंत्री का अपने भाषण यह कहना कि अमेरिका अब अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद के फर्क को निकालना बंद करे । यह बयान निश्चय ही आई एस आई एस और अन्य आतंकी संगठनॉ के प्रति हो रही चिंताओं को रेखांकित करते हैं । आर्न्कियों के द्वारा बंधक बनाये गये भारतीयों को छुडाना भारत के लिए तीखा सबक था । इतना तो तय है की आई एस आई एस का बढना भारत के कभी भी शुभ संकेत नही हो सकता है ।

प्रश्न उठता है क्या दुनिया के  बड़े खतरनाक आतंकवादी संगठन अमेरिका की ही देन हैं ? आखिर क्यों पैदा करता है अमेरिका इन भस्मासुरों को ? इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए । कुछ दिन पहले की बात है जब यह क्रूर आतंकी संगठन अमेरिका तथा अरब जगत के उसके पिट्ठुओं के द्वारा दी गयी आर्थिक एवम सैन्य मदत से सीरिया में बसर अल असद सरकार के खिलाफ जिहाद कर रहा था । यह संगठन अमेरिका की नजरो में अच्छा जिहादी और अच्छा आतंकी संगठन के रूप में पहचाना जाता था । कारण स्पष्ट था ।यह आतंकी संगठन अमेरिकी हितो की रक्षा करता था । अब वही संगठन अमेरिकी हितो के खिलाफ कार्य करने लगा है तो अब उसकी पहचान बुरे जेहादी के तौर पर की जा रही है । आई एस आई एस आतंकी संगठन के पृष्ठ भूमि का अवलोकन करे तो पायेंगे कि यह भस्मासुर ईराक में 2003 अमेरिकी हमले के बाद पैदा हुआ है । वर्ष 2011 के उपरांत जारी गृह युद्ध में यह अमेरिका द्वारा पोषित किया गया । इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन का अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों के द्वारा जन्म होना अब बिलकुल सर्वमान्य बात हो चुकी है । अमेरिका की विदेश नीति के परिणाम स्वरूप ही इन भस्मासुरों का जन्म हुआ है ।

     गहराई से ऐतिहासिक विश्लेष्ण करने पर द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद ही कम्युनिज्म और धर्म निरपेक्ष अरब राष्ट्रवाद को मात देने के लिए ही अमेरिका ने इस्लामिक दक्षिण पंथियो के साथ गठजोड़ बनाने का ऐलान कर दिया था । जिसके परिणाम स्वरुप समय समय पर वहां समय समय पर कट्टर इस्लामिक संगठनों का उदय होता रहा है । द्वितीय विश्व युद्ध में अरब और समूचे मध्य पूर्व में तेल के कुओं की खोज हो चुकी थी । इस युद्ध के पूर्व ही सऊदी अरब के सुल्तान इबू बिन सउद
के अमेरिका के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो चुके थे । इन सम्बन्धो में तब अत्यधिक प्रगाढ़ता देखी गयी जब 1938 में तेल के कुओं की खोज पूरी हो चुकी थी । खास बात ये थी की पूरी दुनियां में फ़ैल रही बहाबी सलाफी नामक इस्लामिक कट्टर पंथी  संगठन की जमीन सऊदी अरब ही था । सउदी अरब क.े कुओं के तेल से अर्जित अकूत धन का इस्तेमाल वहां के शेख शाह अपनी विलासिता पूर्ण जीवन और अय्यासियो पर खर्च करते रहे हैं । इस धन का उपयोग ये कट्टरपंथी ,बहाबी वाद फ़ैलाने में भी धड़ल्ले से किया जा रहा है ।२०१४ में निर्मित एक अमान्य राज्य तथा इराक एवं सीरिया में सक्रिय जिहादी सुन्नी सैन्य समूह है। अरबी भाषा में इस संगठन का नाम है 'अल दौलतुल इस्लामिया फिल इराक वल शाम'। इसका हिन्दी अर्थ है- 'इराक एवं शाम का इस्लामी राज्य'। शाम सीरिया का प्राचीन नाम है।
इस संगठन के कई पूर्व नाम हैं जैसे आईएसआईएस अर्थात् 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया', आईएसआईएल्, दाइश आदि। आईएसआईएस नाम से इस संगठन का गठन अप्रैल 2013 में हुआ। इब्राहिम अव्वद अल-बद्री उर्फ अबु बक्र अल-बगदादी इसका मुखिया है।शुरू में अल कायदा ने इसका हर तरह से समर्थन किया किन्तु बाद में अल कायदा इस संगठन से अलग हो गया। अब यह अल कायदा से भी अधिक मजबूत और क्रूर संगठन के तौर पर जाना जाता हैं।



यह दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन है जिसका बजट 2 अरब डॉलर का है।२९ जून २०१४ को इसने अपने मुखिया को विश्व के सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित किया है। विश्व के अधिकांश मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को सीधे अपने राजनीतिक नियंत्रण में लेना इसका घोषित लक्ष्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये इसने सबसे पहले लेवेन्त क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का अभियान चलाया है जिसके अन्तर्गत जॉर्डन, इजरायल, फिलिस्तीन,लेबनान, कुवैत, साइप्रस तथा दक्षिणी तुर्की का कुछ भाग आता हैं।आईएसआईएस के सदस्यो की संख्या करीब 12,000 से अधिक हो चुकी  हैं।
ऐसे में जब ये हवा अपने चरम पर है की बगदादी की मौत हो चुकी है तो इस संगठन के सामने गंभीर नेतृत्व का संकट आ गया ह



  वाशिंगटन से खबरें आईं कि आईएसआईएस के मुखिया अबु बकर अल बगदादी अमेरिकी हमलों में बुरी तरह घायल होने के बाद मारा गया है। खुद को खलीफा साबित करने वाले बगदादी की मौत की खबरों ने इस संगठन के सामने नेतृत्‍व से जुड़ा एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बगदादी आईएसआईएस के लिए वह नाम है जिसने इस संगठन को दुनिया के नक्‍शे पर दहशत के बादशाह का खिताब दिलायासिर्फ इतना ही नहीं बगदादी के नाम पर ही दुनिया भर के युवा संगठन में भर्ती होने के लिए आगे आए। बगदादी ने वह कर दिखाया है जो दूसरे आतंकी संगठनों के नेता नहीं कर सके हैं।कौन संभालेगा आईएसआईएस की जिम्‍मेदारीअमेरिका की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि फिलहाल उनके पास बगदादी के मौत की कोई सूचना या पुष्टि नहीं है। लेकिन जो खबरें मीडिया में आई हैं उनके मुताबिक बगदादी को काफी चोटें आईं हैं। इन खबरों के बीच ही संगठन के नेतृत्‍व से जुड़ी बातें भी होने लगी हैं।संगठन में बगदादी के अलावा कोई और ऐसा नहीं है, जो बगदादी के ही अंदाज में इस आतंकी संगठन को आगे बढ़ा सके। इस एक बात की वजह से इस आतंकी संगठन में कई तरह का संकट पैदा हो गया है।आईएसआईएस का नेतृत्‍व यह कतई नहीं चाहता है कि इस संगठन की हालत बिल्‍कुल वैसी ही हो, जैसी अल कायदा की ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद हुई।अगर अबु अयमान अल-इराक हवाई हमलों में मारा नहीं जाता तो फिर वही इस संगठन की जिम्‍मेदारी संभालता। ऐसे में अब इस बात पर कयास लगाए जा रहे हैं कि या तो अबु अली अल अनबारी या फिर अबु मुस्लिम अल तुर्कमानी तो स‍ीरिया में भी संगठन का जिम्‍मा संभाले हुए हैं, बगदादी के बाद आईएसआईएस के नेता बन सकते हैं।क्‍या होनी चाहिए आईएसआईएस कैप्‍टन की खूबियां

अलकायदा की तरह ही आईएसआईएस भी अपने कैप्‍टन को लेकर काफी सख्‍त है। नेतृत्‍व की जिम्‍मेदारी सिर्फ उसे मिलेगी जो इस ऑर्गनाइजेशन की सभीशर्तों पर खरा उतरेगा।नए नेता का मिलिट्री खूबियों में खरा उतरना जरूरी नहीं है लेकिन उसे अपने धर्म से जुड़ी बातों को लेकर कट्टर सोच वाला होना चाहिए। बगदादी की ही तरह यह नया नेता भी सिर्फ संगठन का मुखिया नहीं होगा बल्कि उसे भी बगदादी की ही तरह खलीफा बनाया जाएगा। नए नेता को खलीफा के तौर पर घोषित करना संगठन के लिए ट्रंप कार्ड की तरह होगा। यह कदम उसे बाकी चरमपंथी संगठनों की तुलना में श्रेष्‍ठ साबित करेगा। पहले आईएसआईएस की ओर से उमर अल शिंशासी को बगदादी के उत्‍तराधिकारी बनाने का फैसला किया गया थाउमर भले ही विदेशी लड़ाकों के साथ बेहतर तालमेल बैठा लेता हो लेकिन धर्म से जुड़ी बातों में उसका ज्ञान सीमित था। ऐसे में आईएसआईएस की ओर से सिर्फ संगठन की सेना का ही मुखिया बनाया जाएगा। उमर आईएसआईएस के मुखिया से जुड़ी धर्म की बातों के ज्ञान पर खरा नहीं उतर सका था।

गलत हो सकती हैं बगदादी की मौत की खबरें

वहीं इस बात की भी संभावना है कि बगदादी की मौत या फिर उसकी चोट से जुड़ी सभी खबरें गलत हो सकती हैं। बगदादी के फॉलोअर्स की ओर से इस तरह की बासंग तों को दुनिया में फैलाने की कोशिशें हो रही हैं बहरहाल कुछ भी हो पर बगदादी ने अमेरिकी पत्रकारों

के सर कलम की गलती की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही ।
      

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