प्रेम के आचमन की मुहूरत रचो,
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।
इन हवाओं में मन का भरम तोड़ दो ,
क्या पता फिर ये उपवन खिले ना खिले ।।
आज तुम प्रीति की पांखुरी सी लगी ।
होंठ पर स्वर सजी बाँसुरी सी लगी ।।
एक श्रृंगार की कुंडली सी लगी ।
एक तृष्णा की अग्नि जली सी लगी।।
प्रेम के रंग में अब समर्पण करो ।
क्या पता फिर ये तनमन घुले ना घुले।।
प्रेम के आचमन की मुहूरत रचो ।
क्या पता फिर चिलमन खुले ना खुले ।।
जब छनकती सी पायल बजी रात में ।
रंग बिखरे महावर के जज्बात के ।।
चाँद शर्मा गया चाँदनी रात में ।
भीग सब कुछ गया तेज बरसात में ।।
द्वंद संकोच को आग में डाल दो ।
क्या पता फिर ये उलझन जले ना जले ।।
प्रेम के आचमन की मुहूरत रचो ,2
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।।
जिसमे वर्षो से आँखों के काजल धुले ।
जन्म से इस प्रतीक्षित मिलन को चले ।।
बेबसी नाम की इक उमर से मिले ।
इस किनारे की बहकी लहर से मिले ।।
मै ठगा सा रहा देख कर आपको ,
क्या पता फिर ये चितवन छले न छले।।
प्रेम के आचमन का मुहूरत रचो
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।।
मै समर्पित प्रणय गीत लिखता रहा ।
वेदना के स्वरों को सजोता रहा ।।
त्याग की हर परिधि को मिटाता रहा ।
अश्रु की एक सरिता बहाता रहा ।।
मौन के शोर को तुम भी समझा करो ,
क्या पता फिर ये क्रन्दन मिले ना मिले।।
प्रेम के आचमन की मुहूरत रचो,
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।।
याद आँचल में है मुह छिपाना तेरा ।
चिट्ठियों में लिखा हर तराना तेरा ।।
लाज में यूँ नजर का झुकाना तेरा।
सांझ नदिया के पनघट पे आना तेरा ।।
मैं तुम्हें देख लूं तुम मुझे देख लो ।
क्या पता फिर ये निर्जन मिले ना मिले।।
प्रेम के आचमन की मुहूरत रचो ।
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।
-नवीन मणि त्रिपाठी
प्रेम सरोबर रचना ...
जवाब देंहटाएंप्रेममयी सुन्रदर रचना...
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