तीखी कलम से

शनिवार, 24 जनवरी 2015

हे बसंत ऋतु राज तुम्हारा है अभिनन्दन

( गीत)
"हे बसंत ऋतुराज तुम्हारा है अभिनन्दन"

मुखरित हुए हैं पुष्प गीत भौरों का गुंजन ।
बही बयार सुगन्धित चहक उठे हैं खंजन।।
झूम उठा है बगिया का  मुरझाया  चन्दन ।
अमराई  भी  जाग उठी अब  करने बंदन।।

सरस्वती  वीणा  स्वर  में  करती  हैं रंजन।
हे बसंत ऋतु राज तुम्हारा है अभिनन्दन ।।

कोयल  का सन्देश  प्रीति  के गीत  सुनाओ।
उत्सुक पुष्प पराग  स्वरों से ताल  मिलाओ।।
ओस प्रात  की  घासों में  नव  दीप जलाओ।
ओ  मन  के  मयूर  नृत्य  का  रास  रचाओ।।

 सुरभित   शीतल  मंद  पवन में  है  स्पन्दन ।
 हे  बसंत ऋतु  राज तुम्हारा है  अभिनन्दन।।

पीत हुआ  परिधान धरा  का  देखो  सुरभित।
मुग्ध हुआ है गगन प्रणय का बिम्ब समर्पित।।
कलम  कल्पना की भाषा से है अभिसिंचित।
अनुभूति  सुर  लोक  कहाँ  संदेह है किंचित।।

सूरज  की  आभा  से  मुक्त  हुआ  है चिंतन ।
हे  बसंत  ऋतु राज  तुम्हारा  है अभिनन्दन।।

             -नवीन मणि त्रिपाठी

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