तीखी कलम से

रविवार, 25 जनवरी 2015

वतन के नाम कुछ मुक्तक


***  वतन के नाम (मुक्तक)***

नमन  है  उन  शहीदों  को  जो  भारत की  निशानी हैं।
गुलामी  से  लड़ी   हर   जंग  की  पावन  कहानी  हैं ।। 
तिरंगे  में   लिपट  फांसी  का  फंदा   चूम  कर  झूले ।
वतन  की  आबरू   खातिर  मिटी  जो  जिंदगानी है।।

मजहबों  से   तिरंगे  का  ये  मजहब  है  बहुत  ऊंचा।
हुआ है सर कलम उसका जो आजादी  बहुत  पूजा ।।
वो हिन्दू  थे  मूसलमा थे वो  सिख थे  वो  ईसाई  थे ।
सभी  मजहब  से  बंदे  मातरम का स्वर बहुत गूंजा ।।

शरहदों  पर  लहू अब ,जब भी  तुम  मेरा  बहाओगे।
हरकतें  गर  हुई  तुमसे ,तो  कीमत भी  चुकाओगे ।।
जमाने  भूल  जाना  वो, सियासत  सख्त   है  मेरी ।
बरस  जायेंगी   बारूदें,  जिसे   ना   भूल  पाओगे ।।

बहुत तौलो नहीं अब तुम ,तिरंगे  की  सराफत  को।
शहीदों  ने  लिखी  अपने   लहू  से इस इबारत को ।।
हिन्द  की  शान में  अक्सर  यहाँ जलती चिताएं हैं।
ये  चिंगारी  जला  देगी  दहशतों  की  इमारत  को ।।

जियेंगे  देश   की  खातिर , मरेंगे  देश   की  खातिर।
हौसले   ढूढ़   लायेंगे   नए   परिवेश   की   खातिर ।।
ये  कुर्बानी   शहीदों  की,  निशानी  में    तिरंगा   है ।
जली  हैं  ये मसालें  फिर  इसी  सन्देश की खातिर।।

ऐ  ड्रेगन  डूब मर  तू  जा ,किसी चुल्लू के  पानी में ।
बना चूहा  कुतरता ,शरहदों  को  किस   गुमानी  में ।।
ये  शेरो  की जमी  है भाग कर  जाना तेरा मुश्किल ।
कैद  कर  लेंगे  दो  पल  में  तुम्हें  हम  चूहेदानी   में ।।

तेरे  मकसद  पे  पानी  फेरना अब आ गया  हमको ।
ईट  पर  पत्थरों का  फेकना भी  आ  गया  हमको ।।
अमन  के  दुश्मनों अब  हम  बता देंगे  तेरी जद को ।
तेरी मंजिल पे तुझको भेजना अब  आ गया  हमको।।

                                 -- नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण रचना ............बधाई! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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  2. सुन्दर शब्द रचना ..... हर शब्द मोती हैं आपका पहली बार आया हूँ आपके ब्लाँग पर
    http://savanxxx.blogspot.in

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