तीखी कलम से

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

ग़ज़ल


-----***ग़ज़ल***------

दौरे  मजहब   को   भुनाते  रहिए।
खास   जुमलों  को  सुनाते रहिए।।

बचे  ना  कोई अमन  का  फतबा।
सारे  फतबों   को  डुबाते  रहिए ।।

कोई  दरख्वास्त  हुकूमत  से करे ।
फ़ख्र   से  उसको   झुलाते  रहिए।।

मयस्सर   रोटियाँ   कहाँ   उनको ।
बस  उम्मीदों  को  पिलाते  रहिए ।।

पढ़ ना ले वो कहीं  तेरी  फ़ितरत।
इस  तरक्की   को  रुलाते  रहिए।।

हुनर  है आग  लगाने  का अजब ।
तेज  लपटों   को  बुझाते   रहिए ।।

चैन   की  नीद   ना   सोये   कोई ।
कुछ  शिगूफों  को  उड़ाते  रहिए।।

ये  तो  शतरंज  की  सियासत  है।
चाल  में  खुद  को  उठाते  रहिए।।

लुटी  है  राहतों   की   हर  गठरी ।
हक  गरीबो  का   चुराते   रहिए।।

जुल्म  बेपर्दा   हो   गया  साहब ।
बैठ  कर मुँह  को  छुपाते  रहिए।।

      ---नवीन मणि त्रिपाठी

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