-----***ग़ज़ल***------
दौरे मजहब को भुनाते रहिए।
खास जुमलों को सुनाते रहिए।।
बचे ना कोई अमन का फतबा।
सारे फतबों को डुबाते रहिए ।।
कोई दरख्वास्त हुकूमत से करे ।
फ़ख्र से उसको झुलाते रहिए।।
मयस्सर रोटियाँ कहाँ उनको ।
बस उम्मीदों को पिलाते रहिए ।।
पढ़ ना ले वो कहीं तेरी फ़ितरत।
इस तरक्की को रुलाते रहिए।।
हुनर है आग लगाने का अजब ।
तेज लपटों को बुझाते रहिए ।।
चैन की नीद ना सोये कोई ।
कुछ शिगूफों को उड़ाते रहिए।।
ये तो शतरंज की सियासत है।
चाल में खुद को उठाते रहिए।।
लुटी है राहतों की हर गठरी ।
हक गरीबो का चुराते रहिए।।
जुल्म बेपर्दा हो गया साहब ।
बैठ कर मुँह को छुपाते रहिए।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
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