तीखी कलम से

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

तेरी आँखों में


देख  ली   तिश्नगी   हुरूर   तेरी   आँखों   में।
वक्त   लाया   बहुत  सरूर   तेरी  आँखों  में।।

जुल्फे  लहरा के कयामत का जुल्म ढाती हैं।
लाल  डोरे  भी   हैं  मशहूर  तेरी  आँखों  में।।

उम्र  गुजरी   है  वफाओं  की  ताजपोशी  में ।
है   बेवफाई   का   फितूर   तेरी  आँखों   में।।

हर   तरफ  हुश्न  की  चर्चाएं  यहाँ आम  हुईं ।
नाज   देकर   गया   गुरूर   तेरी  आँखों  में ।।

सुलग सुलग के बस्तियां भी जल रहीं तब से ।
इश्क  जब  से  हुआ मजबूर  तेरी आँखों  में ।।

झाँक  के   देख  लिया फितरतें मुहब्बतें  की।
मेरी   तश्वीर   बहुत    दूर   तेरी  आँखों   में ।।

हर्फ़  हर्फ़  में  वो  रूह  लिख  गया  खत में।
अश्क  बेपर्दा   है  जरूर   तेरी  आँखों  में ।।

जाम छलके भी हैं अक्सर यहाँ सलीके बिन।
बे  अदब  हो   गया  सहूर  तेरी  आँखों  में ।।

लोग  हैरान हैं  तब  से  मिली  नज़र  जब  से।
मिल  गई  जन्नतों  की   हूर  तेरी आँखों  में ।।

जिंदगी  भर के लिए कैद कर लेने की सजा ।
फैसले   फिर   हुए   मंजूर  तेरी   आँखों  में ।।

                                -नवीन मणि त्रिपाठी

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