तीखी कलम से

शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है


---**** ग़ज़ल***---

चैनलों  की  शाख  पर  अब  झूठ  का अम्बार है ।
सिर्फ  तारीफों  की  चर्चा  में  बिका अखबार है ।।

रोज   कलमें   हो  रहीं  गिरवीं   इसी  दरबार  में ।
फिर कसीदों से  कलम  का  हो  रहा  व्यापार है।।

कब्र   से  बोली  ग़ज़ल   मेरा  तस्सउर्  खो गया ।
अब खुशामद के लिए  बिकने  लगा फनकार है ।।

नुक्कड़ो  पर  भेड़िये  हैं  नोचते  हर  जिस्म को ।
हर  मुसाफिर  को नकाबों  की  यहां दरकार है ।।

माँ  की  ममता  बाप  का साया कहाँ  परदेश  में ।
रोटियों  के   खौफ   से   टूटा   हुआ  ऐतबार  है ।।

हम एक  थे, हम एक  हैं ,हम  एक ही  होंगे सदा ।
वोट का  मजहब  ये  बातें  कर  गया  इनकार है।।

जिसमें जितना दम था वो बोया जहर इस मुल्क में।
कातिलों   के   हाथ  से  गिरती  कहाँ  सरकार है ।।  

                -नवीन मणि त्रिपाठी

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