तीखी कलम से

रविवार, 26 जुलाई 2015

ग़ज़ल

रोज घूस  का  जहर धकाधक  घूँट  रहे  हैं ।
गांधी  तेरा  देश   चिकित्सक  लूट  रहे  हैं ।।

परिणामो की बात करोगे क्या तुम हमसे ।
दौलत  पाकर यहाँ  परीक्षक  टूट  रहे  हैं ।।

अखबारों  में  उसकी अक्सर  चर्चा  होगी ।
खिला पिला के रखो समीक्षक फूट रहे हैं।।

पुलिस हुई बेईमान सम्भल के चलना भाई।
बिना  रुपइया खूब  अधीक्षक कूट रहे  हैं ।।

कौन   मिलावट रोक सकेगा  मोदी  बाबा ।
जेब  सूंघ  कर  यहां  निरीक्षक ढूढ़ रहे  हैं।।

घोटालो पर रोक  बनी  बकवास  है कोरी।
अम्मा के  संग सभी अभी तक छूट रहे हैं ।।

                       नवीन मणि त्रिपाठी

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