तीखी कलम से

रविवार, 26 जुलाई 2015

है तो है

ग़ज़ल
         
उनको  अपनी अक्ल पर गफलत  पुरानी  है तो है ।
बे  वजह  सी  बात  पर जहमत  बुलानी  है तो है ।।

है  जिन्हें  हैवानियत  से  फिर  मुहब्बत  बे  पनाह ।
उनको चादर  फिर किसी  तुरबत चढ़ानी है तो है ।।

खा  गए  जो   मुल्क  की  दौलत  सरे  बाजार  में ।
भूख  की  बाकी  बची  हसरत  मिटानी  है  तो है ।।

राम  अल्ला  और  जीसस एक हैं  सबको खबर ।
साजिशो   के   वास्ते  नफ़रत  चलानी  है  तो  है ।।

जेल  में  है  वह  दरिंदा  जिसकी  दहशत  बेसुमार।
 हर गली में कुछ न कुछ सोहबत निशानी है तो है।।

कुर्सियां    उसकी  ही  होंगी  था  भरोसा  ये  उसे ।
आज फिर उसकी जुबां फुरकत  कहानी है तो है ।।

मंदिरो    मस्जिद   से    जाते   रास्ते    भी   मैकदे ।
इस  तरह  कुछ  यार के निसबत पिलानी है तो है ।।

हक कभी मांगा तो दुश्मन ख़ास का ओहदा मिला।
रहनुमाओं  को   यहां  फितरत  दिखानी है तो  है ।।

                             -- नवीन मणि त्रिपाठी

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