तीखी कलम से

शनिवार, 25 जुलाई 2015

हुई थी आँख मेरी नम मैं ख़त में और क्या लिखता

------***ग़ज़ल***------

मेरी  जागीर  ना तुम  हो  नहीं कुछ हक  मेरा चलता ।
हुई  थी आँख  मेरी नम मैं खत में और क्या लिखता ।।
जुल्फ़ की  हर  अदाएं  भी बोल जाती है ये अक्सर  ।
पड़ेंगी    दौलते   ये   कम  मुझे  तू  बे  वफ़ा  लगता ।।
 मिल्कियत है उसे हासिल  कद्र से जो था न वाकिफ ।
जमी  बंजर    वही  बेदम  नहीं है  हल  जहाँ  चलता ।।
मैं   बादल  हूँ   वही   जिसमें   बरसने  की  तमन्ना  है ।
नसीबों   में  नहीं   मौसम   यहाँ   सावन   बुरा  मिलता।।
मुकद्दर  में  मिलन   का  वक्त  जब  कर  दे मुकर्रर वो ।
है  बनती  शब् भी है शबनम  नहीं  सूरज उगा करता ।।
ढलेगी    उम्र    भी   तेरी    ढलेंगे    मैकदे   भी  अब  ।
सनम   तेरा  सितम  ता  उम्र  तक  कैसे  यहाँ  चलता ।।
तुम्हारी  बज़्मे   महफ़िल  में गजल  गाता  रहा  है  वो ।
तेरी  पायल  की झनकारे उसे अब सुर  नया  मिलता।।


                      नवीन

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