तीखी कलम से

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

दोहे

टूट  गयीं  सड़के  सभी  टूट  गया  विश्वास ।
बिजली  दुर्लभ  हो  गयी  टूटी सारी आस ।।

यह समाज का वाद है या फिर है अपवाद ।
नेता -जनता मध्य से लुप्त  हुआ  सम्वाद ।।

पिछडो  की माला जपे लेते  पिछड़ा वोट ।
एक  जाति यादव भली  बाकी में है खोट ।।

न्यायालय आदेश का पालन  करे न कोय ।
मापदण्ड  बस  एक है पद पर यादव होय।।

रक्षक  ही भक्षक  बने  लुटता  यहां प्रदेश ।
घूसखोर  नेता  मिले बदल बदल के भेष ।।

महिलाओं पर  क्रूरतम इनका सदा विचार ।
फ़ूला  फलता  राज  में इनके है व्यभिचार ।।

अवसरवादी  हो  गयी  उनकी अब पहचान।
रोज टूटकर गिर रहा मुस्लिम का अभिमान।।

गुंडों  की  भरमार   है  चौराहों   पर  आज ।
इज्जत  राखें  राम जी  उनका आया राज ।।

                   -नवीन

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