जवानी वक्त था जालिम तरस जाते थे दीवाने ।
चाँद कह कर जले है रात दिन तुझ पे वो परवाने ।।
उम्र पूरी गुजारी सिर्फ तेरी चाहतें लिखकर ।
जेहन में आज भी जिन्दा मिले जितने मुझे ताने ।।
शबाबो की अदा फिर जुल्फ लहराना बनी चर्चा ।
बेवफा से मेरी नज़रें लगी थी इश्क फरमाने ।।
तौहीने मुहब्बत का खुदा ने हक दिया तुझको ।
कातिलाना तस्सवुर में लिखी तुम रोज अफ़साने ।।
हमारे खत को न पढ़ना फाड़कर यूं जला देना।
जख्म भूला कहाँ मुझको लगी जब जुल्म को ढाने ।।
वक्त फिसला तेरी मुट्ठी से फिसली आशनाई सब ।
नहीं आते है अब बादल तेरे आँगन को बरसाने ।।
सनम जब हुश्न ढल जाने की बारी आ गयी तेरी ।
फेर कर मुँह गए सारे जो तेरे बिन थे बेगाने ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
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