तीखी कलम से

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

तेरी चाहत में सनम दूर तक बदनाम हुआ ।


तेरी जुल्फों से आज मैं भी  कत्लेआम  हुआ ।
तेरी चाहत में सनम दूर तक  बदनाम  हुआ।।

तू  मुहब्बत  है  मेरे  रूह   के  तस्सवुर   की ।
ख़ास चर्चा तेरी महफ़िल में सुबहो शाम हुआ।।

मिटी  है  हस्तियां  जब  भी  उठी  नजर तेरी ।
झुकी पलक तो  नजारो  से  इंतकाम  हुआ ।।

आबनूसी  है  तेरे   गेसुओं   की   यह   रंगत ।
जहाँ बिखरे हैं वही शब्  का  इंतजाम  हुआं ।।

ये  नज़ाकत  ये  नफ़ासत  ये  हिमाक़त तुझमें ।
मेरे  महबूब  बता  मुझ पे  क्यों इल्जाम  हुआ।।

तेरी  अदा  की  खुशबुओं  से  मचलता  है शहर ।
मेरा   किस्सा  मेरी  खता  पे  क्यूँ  तमाम  हुआ ।।

               --नवीन मणि त्रिपाठी

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