तीखी कलम से

शनिवार, 30 जनवरी 2016

ग़ज़ल


मैं  इबादत   हसरतों   के  नाम   ही  करता  रहा ।
वक्त  से   पहले  कोई  सूरज  यहां  ढलता  रहा ।।

जिंदगी  के  हर अंधेरो  से  मैं  बाजी  जीत  कर ।
बन मुहब्बत  का दिया मैं  रात भर  जलता रहा ।।

रात   की   तन्हाइयाँ   ले  कर   गयीं  यादें   तेरी ।
फिर  सहर आई  तो  मैं यूँ  हाथ  को  मलता  रहा।।

जब  से   देखा  रिन्द  ने  साकी   तेरे अंदाज  को ।
मैकदे  में   जाम  का यह  सिलसिला चलता रहा ।।
                
रात  दिन  सजदा  मेरा  होता  रहा  उस  हुश्न  को ।
जो किसी नागन की माफिक उम्र भर डंसता रहा ।।

                           **** नवीन

सोमवार, 11 जनवरी 2016

गैर से वक्त बिताने का पहर देख लिया



दाग  दामन  का छुपाने  का  हुनर देख  लिया ।
आग  सावन  में लगाने का  असर  देख लिया ।।

बड़ी  कमसिन  हो  हिमाकत  तेरी  तौबा  तौबा ।

फिर क़यामत  को  बुलाने का जिगर देख लिया ।।

हुए   हैं   हुश्न   के  सजदे   तेरी   बलाओं   से ।

नज़र  नज़र  से  पिलाने का  शहर  देख लिया ।।

वो  समंदर   है  मेरा  डूबना  भी   मुमकिन  था ।

तेज  लहरों   में  समाने  का  कहर  देख  लिया ।।

मेरे सहन से  वो  गुजरा है अजनवी की तरह ।

उसकी आँखों में जलाने  का जहर देख लिया ।।

तेरे  वादों  से  इल्तज़ा  थी  मुहब्बत की  उसे ।

गैर  से  वक्त  बिताने  का  पहर देख  लिया ।।

                            नवीन

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

सियासत दां की गद्दारी ने उसको मार डाला है


------***ग़ज़ल***-----

करो  तुम  शौक  से हमला यहाँ हाथों  में  ताला  है ।
मेरी  आदत  में  शामिल  है  मुझे  गांधी ने पाला है ।।

मालदा  को  छुपा  कर  मीडिया तू फख्र कर लेकिन ।
दिखा बिकना  तेरा सबको तुझे दिल  से  निकाला है ।।

तम्बुओं  में  है जो जीता  वो  वाशिंदा   है  कश्मीरी ।
किसी  सरकार  के  साये  तले  लुटता  निवाला   है ।।

बहन बेटी को खोकर भी वतन  कश्मीर  वह माँगा ।
सियासत  दां  की  गद्दारी  ने उसको मार  डाला है ।।

रखो  भूखा  ये मतदाता ,,  रहें   रोटी  पे  ही  नज़रें ।
चन्द  टुकड़ो  पे  ये  सरकार  चलनी पांच साला है ।।

गोलिया  खा  के  चिल्लाना और खामोश  हो जाना ।
फितरते हिन्द का जज्बा तू किस  साँचे में ढाला है ।।

गुलामी दस्तकें  देती , तू  बस कुर्सी से चिपका  रह ।
तेरे  जालिम   इरादों  पर  उजाला  ही  उजाला  है ।।

कहो मत पीठ का  इसको धँसा सीने  में  है खंजर ।
सराफत में मिटे इस मुल्क का  निकला दीवाला है।।

चुटकियों  में  मसल देने का जज्बा  रोज  सुनता  हूँ ।
नहीं क्या आब है तुझमे या  तेरा दिल  भी  काला है ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी