तीखी कलम से

सोमवार, 11 जनवरी 2016

गैर से वक्त बिताने का पहर देख लिया



दाग  दामन  का छुपाने  का  हुनर देख  लिया ।
आग  सावन  में लगाने का  असर  देख लिया ।।

बड़ी  कमसिन  हो  हिमाकत  तेरी  तौबा  तौबा ।

फिर क़यामत  को  बुलाने का जिगर देख लिया ।।

हुए   हैं   हुश्न   के  सजदे   तेरी   बलाओं   से ।

नज़र  नज़र  से  पिलाने का  शहर  देख लिया ।।

वो  समंदर   है  मेरा  डूबना  भी   मुमकिन  था ।

तेज  लहरों   में  समाने  का  कहर  देख  लिया ।।

मेरे सहन से  वो  गुजरा है अजनवी की तरह ।

उसकी आँखों में जलाने  का जहर देख लिया ।।

तेरे  वादों  से  इल्तज़ा  थी  मुहब्बत की  उसे ।

गैर  से  वक्त  बिताने  का  पहर देख  लिया ।।

                            नवीन

2 टिप्‍पणियां:

  1. वो समंदर है मेरा डूबना भी मुमकिन था ।
    तेज लहरों में समाने का कहर देख लिया ।।

    मेरे सहन से वो गुजरा है अजनवी की तरह ।
    उसकी आँखों में जलाने का जहर देख लिया ।।

    ..बहुत सुन्दर ...

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