उम्मीदें थी मिलन में अश्क की बरसात भी होगी ।
मचलती या छलकती कुछ तेरी जज्बात भी होगी ।।
ज़माने से नही शिकवा करेगा काम वो अपना ।
यहां मेरे रकीबों की बड़ी तादात भी होगी ।।
बहारें कब कहाँ ठहरी चमन के वास्ते यारो ।
वहां तो आशिकाना ख्वाहिशें इफ़रात भी होंगी।।
न समझो दर्द के दरिया के माफिक बह रही है वो ।
जिंदगी ! हाँ तेरी किस्मत नयी सौगात भी होगी ।।
जला कर घर मुहब्बत का दिखा है फिर वो दीवाना ।
शहर को अब जलाने की कोई शुरुआत भी होगी ।।
नई शाखों पे गुल से मुस्कुरा के कह गए भौरे ।
हमारे बज्म से ज्यादा तेरी औकात भी होगी ।।
चाँद के नाज पर यूँ कह दिया है बे झिझक उसने ।
तिरे हिस्से में बाकी कुछ अंधेरी रात भी होगी ।।
हरकतें छोड़ दे तू मत दिखाना जख्म अब उसको।
चाहतॉ से खुदा की रहमतें बिन बात भी होगी ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
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