तीखी कलम से

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

ग़ज़ल

उम्मीदें थी मिलन में अश्क की बरसात भी होगी । मचलती या छलकती कुछ तेरी जज्बात भी होगी ।।

 ज़माने से नही शिकवा करेगा काम वो अपना ।
 यहां मेरे रकीबों की बड़ी तादात भी होगी ।।


 बहारें कब कहाँ ठहरी चमन के वास्ते यारो ।
 वहां तो आशिकाना ख्वाहिशें इफ़रात भी होंगी।।


 न समझो दर्द के दरिया के माफिक बह रही है वो । जिंदगी ! हाँ तेरी किस्मत नयी सौगात भी होगी ।।

 जला कर घर मुहब्बत का दिखा है फिर वो दीवाना । शहर को अब जलाने की कोई शुरुआत भी होगी ।।


 नई शाखों पे गुल से मुस्कुरा के कह गए भौरे ।
हमारे बज्म से ज्यादा तेरी औकात भी होगी ।।


 चाँद के नाज पर यूँ कह दिया है बे झिझक उसने ।
 तिरे हिस्से में बाकी कुछ अंधेरी रात भी होगी ।।


 हरकतें छोड़ दे तू मत दिखाना जख्म अब उसको। चाहतॉ से खुदा की रहमतें बिन बात भी होगी ।।

 ---नवीन मणि त्रिपाठी

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