तीखी कलम से

शनिवार, 19 मार्च 2016

उसकी ठहरी जबान तक चलिए

ग़जल की   दास्तान   तक  चलिए ।
थोड़ी  लम्बी  उड़ान  तक  चलिए ।।

इस  बुलन्दी  में कुछ  नहीं हासिल।
वक्त की  हर  ढलान  तक   चलिए।।

हया में  कुछ  न  कह सकी मुझसे ।
उसकी  ठहरी  जबान  तक चलिए ।।

धुएं   में   फ़िक्र   गर    उड़ाना   है ।
चिलम  वाली  दुकान तक  चलिए ।।

कुछ  तकल्लुफ  से  खौफ बरपा है ।
मैकदो   मे   ईमान   तक   चलिए ।।

देखनी  गर  तुझे  तासीर  ए  लहर ।
नदी   में  भी  उफान  तक  चलिए ।।

साजिशें   मुल्क    तोड़   देने   की ।
दुश्मनों   के  मकान  तक  चलिए ।।

गर    मिटाने   का  हौसला  तुझमे ।
तो  यहां  खानदान   तक   चलिए ।।

सितम   लहरों   के  रोकते  जज्बे ।
लिए  हसरत  कटान  तक  चलिए ।।

पस्त   होकर   वो   जान   देता   है ।
दर्दे  मंजर  किसान   तक   चलिए ।।

दौलत   ए   हिन्द   के   लुटेरे    जो ।
उनके  ऊंचे   मचान   तक  चलिए ।।

     --नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. दिल बाग़- बाग़ हो गया त्रिपाठी जी इस ग़ज़ल को पढ़कर. वाह ..क्या लिखा है.

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  2. आदरणीय रंजन साहब बहुत बहुत शुक्रिया ।

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