तीखी कलम से

शनिवार, 5 मार्च 2016

तुम जमी को आसमाँ कहते रहो

अहले  चमन  की दास्ताँ लिखते रहो ।
कुछ  तो उसका  राज़दाँ  बनते रहो ।।

हो   रही   डुग्गी   मुनादी   इश्क  की ।
तूम  भी  थोड़े  मेहरबाँ  लगते   रहो ।।

मत लगा  तू  तोहमतें  नाजुक  है  वो ।
राह   पर   बन  बेजुबाँ   चलते   रहो ।।

अक्स  कागज पर सितमगर का लिए ।
शब् में  बन  करके  शमाँ  जलते रहो ।।

इल्तजा  भी  क्या  है  तुझसे  ऐ  सनम ।
फिर  फरेबी   का   गुमाँ   पढ़ते   रहों ।।

जिंदगी  का   है  तकाजा   बस   यहां ।
इश्क  पर  साँसे  फनां   करते    रहो ।।

यह  शहर भी  जेब  को  पहचानता है ।
गर्दिशों   में    बन   धुँआ  उड़ते  रहो ।।

सच  से वाकिफ हो चुकी है आशिकी ।
तुम  जमी  को  आसमाँ   कहते  रहो ।।

       - नवीन मणि त्रिपाठी 

      नवीन

6 टिप्‍पणियां:

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 07 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खूंटा तो यहीं गडेगा - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. जिंदगी का है तकाजा बस यहां ।
    इश्क पर साँसे फनां करते रहो ।।
    यह शहर भी जेब को पहचानता है ।
    गर्दिशों में बन धुँआ उड़ते रहो ।।
    ........ बहुत सुन्दर ....

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  5. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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