तीखी कलम से

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

तेरी दहलीज पर कुछ इंतजाम हो जाए

-----ग़ज़ल---

 तुम्हारे  दर्द   पे    मेरा    कलाम   हो   जाये ।
अब तेरे  साथ  भी किस्सा  तमाम  हो  जाए ।।

इश्क  मजबूर  न  करदे   किसी  तबाही  को ।
तुम्हारे   हुश्न  को   मेरा  सलाम   हो   जाए ।।

जाम  छलका है  तेरी  हर अदा से ऐ साकी ।
खुदा  करे   न   के  पीना  हराम  हो  जाए ।। 

बड़ी  खामोस  निगाहो  से कत्ल  करती  हो ।
कत्लखाने  में  सनम  एक  शाम  हो  जाए ।।

बहुत  आज़ाद  मसीहा है वो  आशिक  तेरा ।
इक नज़र भर से वो तेरा  गुलाम  हो  जाए ।।

खुदकशी कर न ले  ऐ शम्मा  परवाना  तेरा ।
तेरी   दहलीज  पे  कुछ  इंतजाम  हो जाये ।।

इश्क का कलमा पढ़ाने की है ताकत तुझमे ।
मेरी  मस्जिद  में  तू  मेरा   इमाम  हो  जाए ।।

बेमुरव्वत   की  शक्ल   में   हैं  चाहते   तेरी ।
ख्वाब  तेरा  न  कहीं  बे लगाम  हो   जाए ।।

इस  रियासत को  मुकद्दर से बचा रक्खा हूँ ।
तू  बड़े  नाज़  से   मेरा  निज़ाम  हो  जाए ।।

ख्वाहिशें  ये  के तू  हज़ हो मेरे मदीने  की ।
मेरे  मौला   मेरा  हाजी  में  नाम  हो जाए ।।

           -नवीन मणि त्रिपाठी

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