तीखी कलम से

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

कल तलक थी जो बेवफा काफ़ी

वह मुकद्दर  से  मिट   गया  काफी।
जिसके हिस्से में थी  दुआ  काफी ।।

जुबाँ से  जब भी लफ़्ज है फिसले ।
हुआ   शहर    में   तर्जुमा  काफी ।।

बहुत   बेफिक्र   सितमगर  से  हूँ ।
मेरी  खातिर   मेरा   खुदा काफी ।।

बाद  मुद्दत  के  कब्र  पर  आया ।
आ   रही  है  तेरी   सदा  काफी ।।

गिरफ़्त में  है  इश्क़  की  मुजरिम ।
गाँव  में  फिर  उड़ी  हवा  काफी ।।

फिर मुहब्बत की  बात छेड़  गयी।
कल तलक थी जो बेवफा काफी ।।

अब  उसे  रोकना हुआ  मुश्किल ।
है  अदाओं  पे वो  फ़िदा  काफी ।।

मुस्कुरा  कर  गले  मिला  लेकिन ।
बात   पहले  से  है  जुदा  काफी ।।

नूर   चेहरे  का  कह  गया  उसके ।
रात  भर  वह  रही  ख़फ़ा काफी ।।

है   बरक्कत  में   जुर्म  का  धंधा ।
तू है कातिल तेरी  फ़िज़ा  काफी ।।

           --नवीन मणि त्रिपाठी

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