तीखी कलम से

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

मेरे आसुओं से ख़ता पूछते हैं

वो  मंजिल  पर आकर  पता  पूछते हैं ।
मेरे  अहले   दिल  की  रजा  पूछते हैं ।।

नसीहत  जफ़ाओं  की  जो  दे  गए  थे ।
सरे   बज्म    हमसे   वफ़ा   पूछते   हैं ।।

लिखी  जिसने  दर्दे  सितम की इबारत ।
मेरे   आसुओं   से    ख़ता   पूछते   हैं ।।

किया  जब भी  तारीफ  मैंने किसी की ।
मुहब्बत   का   हर   वास्ता  पूछते   हैं ।।

हुई जब से हासिल उन्हें  मिलकियत है।
जमाने   से  कीमत  अता   पूछते   हैं ।।

खुदा  जाने क्या  फैसला  देंगे  हाकिम ।
गुनाहों   की   हमसे   दफ़ा  पूछते  हैं ।।

जलाने  की  हसरत लिए मेरे कातिल ।
हरे   जख़्म   की   दास्ता   पूछते   है ।।

खिंजा में  है पत्तो  ने क्यूँ  साथ  छोड़ा ।
ये  हाल  ए  शजर  फ़ाख़्ता  पूछते  हैं ।।

बड़ी शोख नजरे अजब की हिमाकत ।
हैं  दिल  में   मगर  रास्ता   पूछते  हैं ।।

       नवीन मणि त्रिपाठी 


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