तीखी कलम से

बुधवार, 29 जून 2016

कातिलों के हर मसीहा की इनायत जान ले

अब  कैराना  और  मथुरा से  उसे  पहचान  ले ।
इस रियासत की  सराफत को यहीं से मान ले ।।

घाव गहरे  हैं  मुजफ्फर के दिलों में आज भी ।
कातिलों के हर  मसीहा की इनायत जान ले ।।

वक्त आया है शिकस्तों का इसे जाया  न कर ।
कुछ सबक के  वास्ते बेहतर  इरादा  ठान ले ।।

हैं  बहुत  जालिम  मुखौटा  डाल के बैठे  यहाँ ।
फिर लुटी हैं बस्तियां  उनसे  नया  फरमान ले ।।

है ठगा  सा फिर  खड़ा अदना  बहुत मायूस है ।
वोट देकर जो गया  था घर  बहुत अरमान  ले ।।

जब खुदा की ही नज़र से गिर गयी सरकार ये ।
मौलवी  निकले  दुआ  करने यहां लोबान  ले ।।

खो के अस्मत शाख पर हैं झूलती यह बेटियां ।
आज तक रोता बदायूं  दाग  का अपमान ले ।।

कब तरक्की क्या तरक्की हो गयी ढूढो  जरा ।
गाँव जलता ही मिला अक्सर कोई तूफ़ान ले ।।

जात के हमदर्द वो  उनकी सियासत जात की ।
बिक  रही  है  नौकरी चलती  हुई  दूकान  ले ।।

                --नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-07-2016) को "आदमी का चमत्कार" (चर्चा अंक-2390) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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