तीखी कलम से

मंगलवार, 7 जून 2016

जंगल का है राज खूब मनमानी कर

कुर्सी  पर  तू  बैठ  के  ना  शैतानी  कर ।
जातिवाद  से  थोड़ी आना  कानी  कर ।।

साम्राज्य  का  अंत  तुम्हारे  निश्चित  है ।

 काशी  मथुरा  में  ना  तू  नादानी कर ।।

निर्दोषो  का   लहू  पिलाकर  गुंडों  को ।

रुतबा अपना  धूम से पानी  पानी कर ।।

माँग  रही   है  न्याय  बदायूं  की  बेटी ।

बचे न कोई साक्ष्य बहुत निगरानी कर ।।

काशी  के  सन्तों  की  हड्डी  तोड़  चुके ।

अखलाकों के घर जाकर अगवानी कर ।।

सड़कें  टूटी  बिखरी  तुझ  पर  रोती हैं ।

जा  जनता से झूठी  गलत बयानी कर ।।

समाजवाद  की  हत्या  के आरोपी तुम ।

नई   सफाई   देकर  नई  कहानी  कर ।।

हे  दंगो   की   राजनीति   के  महारथी ।

जनता  भोली  भाली है  कुर्बानी  कर ।।

बनी   सैफई  अय्यासों   का   अड्डा  है ।

नचा  हिरोइन बैठ  के राजा रानी कर ।।

गोमांस  को  बकरा  कहने  वाले  तुम ।

भरी अदालत में जा बात जुबानी कर ।।

ओबीसी  के नाम दिखा  बस  यादव है ।

बची  खुची  भर्ती  में नई  निशानी कर ।।

घोटालो  से  लूट  तिजोरी भर  डाली   ।

जंगल  का है राज खूब  मनमानी कर ।।

         नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी: