तीखी कलम से

बुधवार, 20 जुलाई 2016

अपना नकाब रुख़ से हटाया न कीजिये

मेरे ज़ख़म की  याद मिटाया  न  कीजिये ।
मुझको मेरा  नसीब  पढ़ाया  न कीजिये ।।

माना  कि मुहब्बत से  तुझे  वास्ता  नही ।

यह बात सरे आम  बताया  न  कीजिये ।।

हो आग बुझाने  के  सलीके  से  बेखबर ।

पानी  में कभी आग  लगाया  न कीजिए।।

बादल   तुझे  गुरूर  बरसने   पे  बहुत  है ।

सावन  मेरा  जले तो बुझाया न  कीजिये ।।

इल्जाम  ज़माने   का  बेहिसाब  है   यहां  ।

अब रात इस शहर में बिताया न कीजिये ।।

कुछ खास तजुर्बो  से सबक आम हो गया ।

जो गिर गया नजर  से उठाया न  कीजिये ।।

शायद   तेरे  फरेब   की   चर्चा  बुलन्द  है ।

अब कब्र पर चराग  जलाया  न  कीजिये ।।

देखा  तुझे  तो  होश  गवाता  चला  गया ।

अपना नकाब रुख से  हटाया न कीजिये ।।

            -नवीन मणि त्रिपाठी

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