तीखी कलम से

बुधवार, 20 जुलाई 2016

जनाज़े को मेरे उठाने से पहले

तेरे  बज्म  में   कुछ   सुनाने  से पहले ।
मैं  रोया  बहुत   गुनगुनाने   से  पहले ।।

न  बरबाद  कर  दें  ये  नजरें  इनायत ।
वो दिल मांगते  दिल  बसाने से पहले ।।

है  इन  मैकदों  में चलन  रफ्ता  रफ्ता ।
करो होश गुम  कुछ पिलाने से पहले ।।

 तेरे  हर  सितम  से   सवालात  इतना ।
मैं   लूटा   गया  क्यूँ जमाने  से पहले ।।

बदल  जाने   वाले  बदल  ही  गया तू ।
मुहब्बत  की  कसमें निभाने  से पहले ।।

 ख़रीदार  निकला  है  वो आंसुओं  का ।
जो  आकर गया  आजमाने  से   पहले ।।

जुबाँ को हया  ने  इजातजत  कहाँ दी ?
शबे  वस्ल  नजरें   झुकाने   से  पहले ।।

बयां  कर  गयी  सारे  चेहरे  की  रंगत ।
तेरे   दर्दे   गम   को  छुपाने  से  पहले ।।

तू कहकर गया अलविदा फख्र से क्यों ।
जनाजे   को   मेरे   उठाने   से  पहले ।।

            - नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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