तीखी कलम से

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

पतुरिया

---- पतुरिया ---(आंचलिक कहानी )
                             --नवीन मणि त्रिपाठी

   "अम्मा मैं बहुत अच्छे नम्बर से पास हो गई हूँ । अब मैं भी पी सी एस अधिकारी बन गयी ।"


बेटी दुर्गा ने अपने पी सी एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने की सूचना को जैसे ही नैना को बताया नैना की आँखों से आंसू छल छला कर बहने लगे ।

     "अरी मोरी बिटिया बस तुमका ही देखि देखि ई जिंदगी ई परान जिन्दा रहल ।  " आज हमार सपना पूरा हो गइल । तोरे पढाई माँ आपन पूरा गहना गीठी सब बेच देहली हम । दू बीघा खेत बिक गइल । चार बीघा गिरो रखल बा । आज तू पास हो गइलू त समझा भगवान हमरो पतुरिया जात के सुन लिहलें ।

   दुर्गा को गले लगा कर काफी देर तक नैना रोती रही । माँ को देख कर दुर्गा की आँखों में भी आंसू आ गए ।दुर्गा की आँखों के सामने वह बचपन का सारा मंजर घूम गया था । लोग बड़ी हिकारत भरी नजरों से देखते थे । माँ का समाज में कोई सम्मान नही था । गांव में आने वाले लोग घूर घूर के जाते थे । नैना ने बहुत साफ शब्दों में सबको बता दिया था बेटी नाच गाना नही सीखेगी । स्कूल जायेगी और साहब बनेगी । गाव का वह माहौल जिसमे पढाई से कोई लेना देना ही नही था । अंत में माँ ने सरकारी स्कूल के छात्रावास में रखकर पढ़ने का अवसर दिलाया ।

       सचमुच में नैना का त्याग और बलिदान गांव वालों के लिए एक मिशाल से कम नही था ।

        गाँव के लोग एक एक कर आ रहे थे । आखिर दुर्गा पतुरियन के पुरवा का गौरव जो बन चुकी थी । ढेर सारी बधाइयां ढेर सारे लोगों  की दुआए नैना की ख़ुशी में चार चाँद लगा रहे थे ।


     चर्चा कई गांव तक पहुँच चुकी थी । खास बात यह नही थी कि दुर्गा ने परीक्षा पास कर ली है बल्कि खास तो यह था कि एक पतुरिया की बेटी ने यह परीक्षा पास की है । दूसरे दिन अख़बार में जिले के पेज पर दुर्गा की खबर प्रमुखता से छपी । हर गली मुहल्ले चौराहे पर सिर्फ दुर्गा की ही चर्चा ।


      दुर्गा आज समाज का बदला हुआ रूप देख कर हैरान थी । यह वही समाज है जब दुर्गा सौरभ के साथ उसके घर गयी थी तो सौरभ की माँ ने उसके बारे में पूछा था । सौरभ ने बताया था मेरे स्कूल में  पढ़ती है मेरी पिछले साल की कक्षा पांच की किताबें पढ़ने के लिए मांगने आयी है । पतुरियन के टोला में रहती है ।

सौरभ की बात सुनकर सौरभ की माँ ने कहा था
" हाय राम ! ई पतुरिया की बेटी का घर मा घुसा लिहला । इका जल्दी घर से  पाहिले बाहर निकाला ।
जा उई जा पेड़ के नीचे बैठ ...... ऐ लइकी ...........घर से बाहर निकल पाहिले । तोके कउनो तमीज न सिखौली तोर माई बाप का ? जा.....जा...."

    सौरभ को बात बहुत बुरी लगी थी और माँ से लड़ने लगा था तो माँ ने सौरभ की गाल पर दो चार तमाचे भी जड़ दिए थे । बेचारा सौरभ दूसरे दिन चोरी से उसे सारी किताबें दे गया था । बाद में वही सौरभ दुर्गा का सबसे अच्छा दोस्त साबित हुआ । और वह दोस्ती आज भी पूरी तरह कायम है ।


     उपेक्षा तिरस्कार से रूबरू होते होते  दुर्गा की इच्छा शक्ति दृढ होती गयी थी ।  इसी दृढ़ इच्छा शक्ति से उसने वह लक्ष्य हासिल कर लिया जिससे  आज वही समाज उसका गुणगान करता नज़र आ रहा था ।


      गाँव वाले दबी जुबान से यह भी कहते थे दुर्गा तो माधव की बेटी ही नहीं है । यह तो माधव के मरने के साढ़े दस महीने बाद पैदा हुई थी । पतुरियन के पुरवा के लिए यह बात कोई खास मायने नही रखती थी । सबके इज्जत में कालिख की कमी नही थी । सबके अपने अपने अफ़साने थे ।


     दिन के दस बजे थे । दुर्गा के घर के सामने हेलमेट लगाए एक मोटर सायकिल सवार नौजवान ने अपनी बाइक रोकी ।


  " आंटी जी दुर्गा का घर यही है न ?


" हाँ बिटवा  घर तो यही है । हाँ ऊ बइठी बा पेड़वा के नीचे   "


"जी दुर्गा को बधाई देने आया हूँ । "


हेलमेट लगाये युवक ने दुर्गा को देखकर आवाज दिया ।


"बधाई हो दुर्गा !"


अरी तुम ? .......कैसे हो सौरभ ?


दुर्गा का चेहरा खिल उठा था ।

ऐसा लगा जैसे सौरभ से मिलकर जाने क्या पा गयी हो । शायद उसकी ख़ुशी दो गुना हो गयी थी ।

"अख़बार में पढ़ा तो रहा ही नही गया और आज पहली बार तुम्हारे घर भी आ गया ।" सौरभ ने कहा ।


    " हाँ सौरभ यह सारी तपस्या तो बस तुम्हारी वजह से पूरी हो गयी । एक तुम ही तो थे जिसकी गाइड लाइन से मैं यह मुकाम हासिल कर सकी । चोरी चोरी तुम्हारे भेजे गए पैसों की मैं बहुत कर्जदार हूँ । आज तुम मेरे घर आ गए समझो भगवान् ने मेरी सारी मुराद पूरी कर दी । "


     "और सुनाओ क्या हो रहा है आजकल ?"

दुर्गा ने पूछा ।


"दुर्गा मैं दो बार आई ए एस के लिए ट्राई किया । एक बार तो प्री ही नही निकाल पाया दूसरी बार में प्री और मेन दोनों  क्वालीफाई करने के बाद इंटरव्यू से आउट हो गया ...............। "

     "इस बीच यू पी एस सी से कस्टम इंस्पेक्टर के लिए क्वालीफाई हो गया हूँ । "

     "बधाई हो सौरभ । अब तो नौकरी भी तुम्हे मिल गयी । अब तो शादी में कोई बाधा नहीं । "

"हाँ दुर्गा तुम ठीक कह रही हो ,
       अम्मा भी यही कहती हैं जल्दी से जोड़ी ढूढ़ नहीं तो मैं अपने पसंद की कर दूँगी । "

   "तो ढूंढी कोई जोड़ी ?"

"सच बताऊँ क्या ?"

"हाँ हाँ बताओ न ? "

"जोड़ी तो वर्षों पहले से ही ढूढ़ चुका हूँ । लेकिन अब वह शादी होगी या नहीं भगवान् ही जाने ......"

दुर्गा के मन में उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी ।

कैसी है वो ?
बिलकुल तुम्हारे जैसी ?
अरी यार साफ साफ बताओ न ?

क्या तुम्हारे ही कास्ट में है ?


"नहीं जी इंटर कास्ट ।"


        दुर्गा की धड़कने तेज हो गयीं थी । जिसे वह वर्षो से चाहती आ रही थी लेकिन जाति के कठोर नियम के आगे सौरभ से शादी के बारे में सोच तक नही सकी थी आज वही सौरभ इंटरकास्ट मैरिज की बात कर रहा है । दुर्गा के मन में जो मुहब्बत वर्षो से दबी पड़ी थी आज वह तेजी से हिलोरे मारने लगी ।


क्या सोचने लग गयी दुर्गा ?


"कुछ नही सौरभ । बस यही सोच रही हूँ वो भाग्यवान आखिर है कौन । मैं तो तुम्हारे घर के जाति अनुशासन से अच्छी तरह परिचित हूँ । मुझे बचपन की वह बात आज भी याद है । मुझे नही लगता तुम्हारे खानदान के लोग उसे स्वीकार कर लेंगे । "


सच बताओ सौरभ कौन है वो ।


दुर्गा तुम्हे क्या लगता है ? मेरा सबसे अजीज कौन है । वो चिट्ठियां वो बात चीत का दौर ......जो भी चलता था क्या वह तुम्हे याद नहीं .......और फिर कैरियर के लिए .......सब कुछ बन्द कर देना क्या वह भी तुम्हे याद नहीं ?


     "क्या मतलब .......तुम्हारा इशारा कहीं मेरी ओर तो नहीं ......."


नहीं नहीं सोचो .......खुद सोचो ....और बताओ ?


    दुर्गा अपनी जिंदगी में मित्र के रूप में सिर्फ सौरभ को चुनी थी  लेकिन इतने दिनों के बाद भी यह सम्बन्ध सिर्फ दोस्ती के लिबास में जिन्दा रहा । उसने कभी कल्पना भी नही की थी कि उसका सपना कभी यथार्थ के धरातल पर भी साकार हो सकता था । आज सौरभ की बातो से उसे जो संकेत मिल रहा था वह अकल्पनीय था । उत्सुक्ताएं अपने चरम को छू रही थी ।

     "कौन है सौरभ प्लीज .....बताओ न । "
    सौरभ ने एक झटके में ही कह दिया ।

    "तुम हो दुर्गा ।"

अरे यह क्या कह दिया सौरभ तुमने ।

मैं एक पतुरिया की बेटी हूँ । पता है न तुम्हें ।

कौन स्वीकार करेगा मुझे ? अपने परिवार और समाज से बहिष्कृत हो जाओगे ।

     दुर्गा तुमने मुझसे कभी नही कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ । लेकिन मुझे तुम्हारे प्यार का एहसास हमेशा रहा है । यह अलग बात है कि अब तुम पी सी एस अधिकारी बन जाओगी ........

"बस बस सौरभ अब एक शब्द भी बाहर मत निकालना ..........."

    दुर्गा की आँख में आँसू आ गए ।


"हाँ मैं सच में तुमसे बेपनाह मुहब्वत करती थी और आज भी करती हूँ । तुम्हारे अलावा जिंदगी में मैंने कभी किसी को स्थान नही दिया । दुनिया की सबसे कीमती वस्तु के रूप में तुम्ही हो मेरे लिए ।

     लेकिन शादी करके मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी तबाह हो जाए यह मुझे मंजूर नहीं । मैं कुआरी ही रहकर तुम्हारे प्यार के सहारे जिंदगी जीने की क्षमता रखती हूँ । "

"बस कह लिया न तुमने दुर्गा ?"


यह तुम्हारी निराशा है । मैं सारी स्थितियां संभाल लूँगा तुम अपनी अम्मा के बारे में सोचो । मैं सन्डे को फिर आऊंगा । मुझे उम्मीद है अम्मा तैयार हो जाएँगी । जो सच होगा वही बताना ........और हाँ मैंने फैसला कर लिया है अपने मन में । शादी  सिर्फ तुम्ही से ही करूँगा । अब हम बड़े हो चुके हैं । "


इतना कहते कहते सौरभ बाइक स्टार्ट करके  चला गया ।

    दुर्गा को जैसे सब कुछ मिल गया हो । भला अम्मा  को क्या एतराज होगा सब कुछ दुर्गा की हाँ में ही छुपा है । पहले ही दिन दुर्गा के मन में हजारों तरह की कल्पनायें आती रही । पतुरियन के पुरवा की सबसे खूबसूरत लड़की दुर्गा ही थी । लेकिन माँ की वजह से गांव के माहौल से बिलकुल जुदा थी । माँ ने कभी नही चाहा था कि दुर्गा उसकी  जैसी जिंदगी जिए । सब कुछ बेटी के अच्छे भविष्य के लिए  न्यौछावर कर दिया था । दुर्गा को आज अपने सपने का राजकुमार बिलकुल सामने दिखाई दे रहा था । रात भर दुर्गा ख़ुशी से सो नही पायी ।

     भोर का समय । नैना चाय बनाकर दुर्गा के पास आयी ।


   "का बात है बिटिया आज तोर ई अंखिया लाल काहे भइल बा । आज निदिया न आइल का ?

    न अम्मा । सचमुच मा निदिया ना आइल बड़ा उलझन मा रहली ।
काहे का उलझन रे ।

"एगो लइका हमसे प्यार करेला और हमहू वो के

बहुत चाहीला ।"
दुर्गा  की बात सुनकर नैना चौंक पड़ी

  "अरे दुर्गा पढ़ लिखि के बेवकूफ न बना । ई सब आजकल के लइके बहुत चालू होले । तोहपे ना , ....तोरी नौकरी पर कौनो दाना डारत बा । इहाँ पतुरिया की लइकी से कौनो शरीफजादा शादी करी का ? अरे जा पाहिले नौकरी करा ....फिर कौनो साहब लइका से शादी करिहा । ई दुनिया बहुत चालू बा दुर्गा ।"

     माँ की बात काटते हुए दुर्गा झट से बोल पड़ी -

     "अम्मा लइका बहुत शरीफ बा । बचपन से ऊ के हम जानीला । हमरे साथे ऊ पढ़त रहल । उ हो साहब बनि गइल बा ।

     अम्मा बड़ी जाति के है ऊ । "

कौन गांव के है ऊ । नैना ने पूछा ।


अम्मा  बेनीपुर का ठाकुर हो वे ऊ ।

बेनी पुर !............!!!!!!!
अरे ऊ गुंडन के गाव है । छोड़ा छोड़ा नाम मत लिहा । पूरा गांव लोफर बा हम सबके जानीला । बहुत बार ऊ गांव मा नाचे गइली हम । पूरा गांव अय्यास और शराबी बा । ऊ गाव मा तो हम तोर शादी कबहू न होये देबे रे ।"

दुर्गा का चेहरा लटक गया । कुछ देर सोचने के बाद माँ से बोली ।


   "अम्मा इतवार के लइका फिर आयी । उ हे जो कल आइल रहल । देखि ला बात बात चीत कइके तब रिजेक्ट करा तू । बहुत सुन्दर और अच्छा लइका बा अम्मा । ऊ लोफर अय्यास ना बा ।"


"ठीक बा जब आई तब देखल जाइ । चला दाना पानी करा । " नैना ने कहा ।


"नही अम्मा पाहिले बतावा न ? तैयार हो जइबू ना ? "

पगला गइल बाटू का दुर्गा ? बेनीपुर के सब ठाकुरवे खानदानी बनैले । पतुरिया के बिटिया के गाव माँ न घुसे देइहें । नजदीक के बात बा ....छुपी ना ,.......  सबके पता हो जाइ । तोर जिनगिया सब बेकार कर देइहें ।"

दुर्गा ने फिर माँ को समझाना चाहा ।


"ना अम्मा ऐसा ना बा ऊ । हम वो के बचपन से जानीला ।हमके सबसे ज्यादा चाहेला । पहिले  देखा ऊ के फिर बतैहा ।

इतवार के ऊ लइका आई सवेरे ।"

    "ठीक बा देखल जाई । अब  चला चाय पानी पिया ।" नैना ने कहा ।


    अम्मा की बाते सुनकर दुर्गा को अब चिंता होने लगी थी । कही ऐसा न हो अम्मा सौरभ को पसंद ही ना करें ।  अब तो एक एक रात का गुजरना भी पहाड़ हो जायेगी ... तरह तरह की चिंताए ।

   नैना भी बेटी की बातें सुनकर कम परेशान नहीं थी । परेशान होती भी क्यों ना ?  बेनी पुर से उनकी बहुत गहरी यादें जो जुडी थी ।

       

                नैना बाई आज सत्तर के पड़ाव को पार चुकी थी । उनकी जेहन में वह जमाना रह रह के कौंध उठता था । पतुरियन का टोला गांव में नैना बाई की तूती बोलती थी । अपने हुस्न के शबाब के दिनों की याद वह अक्सर बड़े गर्व के साथ लोगों से साझा कर लेती । पूरे गाँव का एक ही पेशा  बस नाचना और गाना । शाम को अक्सर क्षेत्र के रईशजादों का जमावड़ा लगता था । नैना बाई का कोठा तहजीब के साथ साथ  गीत और ग़ज़ल में अपना सर्वोच्य स्थान रखता था । नैना एक ऐसी नर्तकी थीं जिसके जिसके एक एक अंग कलात्मक अभिव्यक्ति से परिपूर्ण  थे । उस जमाने में नैना ने हाई स्कूल पास किया था जब हाई स्कूल पास गांव में इक्के दुक्के ही मिल पाते थे । बाप तो जब नैना पेट में थी तभी स्वर्ग लोक सिधार गए और माँ भी पांच  साल की उम्र में चल बसी थी । मौसी ने पाला था शिक्षा दीक्षा भी मौसी ने दिलाई । बचपन से ही गाने बजाने का शौक । मौसी ने बाद में उसकी शादी एक ऐसे परिवार से कर दी जहाँ से उसकी जिंदगी का पासा ही पलट गया । बाद में पता चला यह शादी नहीं थी बल्कि उसे अच्छी कीमत लेकर बेच दिया गया था । शादी का सिर्फ इतना मकसद था कि नैना की खूबसूरती और कला से बहुत धन पैदा होगा ।

      धीरे धीरे नैना की आवाज और अदा का जादू बहुत मशहूर हो चला था । चौदह  घर के इस पतुरियन के टोला में शाम ढलते ही घुंघरूओं की खनक, तबले की थाप के साथ हर घर में हारमोनियम के सुर के साथ साथ गूँजती स्वर लहरियां गंधर्व लोक की भाँति अद्भुद प्रतीत होती थी ।


      रूपये बरसने में नैना बाई के कोठे की बात ही कुछ और थी । कई बार तो कोठे पर बन्दूकें भी निकल आती थी ।कबीलाई संस्कृति के अंतर्गत देह व्यापार पूरी तरह वर्जित था । गांव की बुजुर्ग महिलाएं कच्ची शराब भी बनाकर बेचती थी । सुरा और सुंदरी के दीवाने बरबस ही गांव की और खिचे चले आते ।  शादी व्याह के लिए नैना की बुकिंग सबसे ज्यादा रूपये पर होती थी । बगल के गाव के बड़े भू माफिया ठाकुर त्रिभुवन सिंह का नैना को पूर्ण संरक्षण प्राप्त था। त्रिभुवन सिंह उस क्षेत्र के सबसे बड़े जमीदार थे । देखने में बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व । काफी सुन्दर इकहरा बदन गोरे चिट्टे 35 की उम्र । नैना उन्हें देख कर आकर्षित हो गयी थी । त्रिभुवन सिंह काफी इज्जतदार व्यक्ति थे । सामाजिक मर्यादा को तोड़ना उन्हें कतई मंजूर नही था । नैना ने जब उन्हें एक नजर देखा तो अपनी सारी सुध बुध खो बैठी थी । ठाकुर त्रिभुवन सिंह भी नैना की अद्भुद अदाकारी के कायल हो चुके थे । नैना के सौंदर्य का सम्मोहन ठाकुर साहब के ऊपर हावी हो चुका था । सामाजिक मर्यादा को बचाते हुए उन्होंने नैना को दस बीघा खेत इस शर्त पर बैनामा कर दिया था कि जब भी उन्हें नैना की जरूरत हो नैना उनके पास आ जाया करें । शर्त यह भी थी कि यह बात कभी किसी को पता भी न चले । नैना का पति माधव हर वक्त शराब के नशे में चूर रहने की वजह से जल्द ही चल बसा था । उस जमाने में नैना की स्थिति काफी सुदृढ़ हो चुकी थी । नैना के घर क्षेत्र की और भी बड़ी रियासतों का आना जाना शुरू हो चुका था और इसी चक्कर में एक मामूली सी बात को लेकर छुट भइये लफंगों से  एक दिन ठाकुर त्रिभुवन सिंह का विवाद हो गया था ।कुछ दिन बाद इन्ही लफंगों ने ठाकुर साहब का कत्ल भी कर दिया था । नैना साफ साफ इस विवाद में फसने से बच गयी थी ।ठाकुर साहब की मुहब्बत का राज आज भी बेपर्दा नही हो सका था लेकिन उनकी  मौत का सदमा नैना को बर्दास्त नही हुआ  और बस उसी दिन से उसने नाचना गाना छोड़ दिया था ।


       उसी दौरान  नैना  ने एक सुन्दर बेटी को जन्म दिया जिसका नाम दुर्गा रखा गया था । बेटी का बाप कौन था यह रहस्य ही बना रहा ।


     वह  इतवार आ ही गया जिसका नयना और दुर्गा को बेसब्री से इन्तजार था । आज दुर्गा का श्रृंगार अद्भुत था  । सवेरे चार बजे से ही घर में चहल कदमी हो रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे फिर वह आज रात भर नही सोई है । नहाना धोना पूजा पाठ से निवृत्त होकर बार बार छत पर जाकर रास्ते को देख आती थी । एक अजीब सी बेचैनी उसे परेशान कर रही थी दिन गुजरता जा रहा था और उसकी बेचैनियां किसी तूफ़ान की माफिक अपना रंग बदल रही थीं । धीरे दिन ढलने को आया लेकिन कोई बाइक उसे घर की ओर आते नही दिखी । दुर्गा काफी मायूस सी होती जा रही थी तभी सौरभ की मोटर सायकल उसके दरवाजे पर आ रुकी । सौरभ ने आंटी नमस्ते बोला तो  नैना ने सौरभ को कमरे में बुलाया ।


     सौरभ जब कमरे में पंहुचा  और हेलमेट उतारा तो नैना उसे देखी तो देखती ही रह गयी । दुर्गा पानी लेकर आ चुकी थी । आज पहली बार दुर्गा की नजरें शर्म से झुकी हुई नज़र आ रही थी ।

          सौरभ को देखकर नैना के मन में हजारों तरह की आशंकाए पनप रही थी । वह अपने अतीत के पन्नों से बेनी पुर में सौरभ से मिलते जुलते तश्वीरों को ढूढ़ रही थी । शायद यह तश्वीर उनसे बहुत कुछ मिलती जुलती है । इन्ही सब विचारों में नैना उलझी हुई थी ।

    दो पल का मौन टूटा


"का नाम बा ठाकुर साहब आपका ?"


"जी माता जी मैं नैना का दोस्त हूँ । मेरा नाम सौरभ है । यहां से तीन  किलो मीटर दूर बेनीपुर का हूँ । "


हाँ ऊ ता दुर्गा बतौली हमके ।

सुनली है दुर्गा से शादी का बात करली हैं आप ।
हाँ दुर्गा को पसंद करता हूँ । बचपन से । अब मुझे इंस्पेक्टर की  सरकारी नौकरी मिल गयी है  शादी के लिए दुर्गा से हाथ माँगा है ।

    आपके पता बा न कि हम पतुरिया जात हैं न ?

"हाँ पता है । मुझे दुर्गा से प्रेम है । शादी के बाद हम गाव् से दूर चले जाएंगे । इंटर कास्ट मेरे लिए कोई समस्या नही है माता जी । माँ को मना लूँगा । बस आप हाँ कहिये । "

    बिटवा हम चाहीला हमार बिटिया सुखी रहे । यहि बिटिया के लिए हम बहुत कुछ खो देहली । पिता जी से भी अपने राय बाट नाही कइला ?"


    "पापा नही हैं माता जी  । "


"अरे का भइल उ के ?


"मेरे बचपन में ही खतम हो गए थे ।"


 "का नाम रहल उनके ?"


   " माता जी उनका नाम ठाकुर त्रिभुअन सिंह था । "


    ....इतना सुनते ही नैना की आँखों से आंसू गिरने लगे .......


    "आपके नाम बचपन में शीलू रहल का ?


  "   हाँ माता जी मैं ही शीलू  हूँ ।"

नैना आसुओ को रोकने की बहुत कोशिस
 कर रही थीं पर आंसू आ ही जा रहे थे ।

    बिटवा ई शादी न हो पाई । और कौने कारन से न हो पाई ई बात मत पुछिहा । हम अपने जीते जी ई शादी न होवे देब ।  शीलू बेटा बुरा मत मनिहा हमहू तुहार महतारी समान हई ।


    इतना सुनते ही दुर्गा और शौरभ को जैसे करंट लग गया हो ।

यह क्या माँ उल्टा पुल्टा बोल रही हैं । दोनों की आँखे एक दुसरे से यही पूछ रही थी । दोनों हैरान ।
     इधर नैना की आँखों से आंसू बन्द ही नही हो रहे थे ।

  "आखिर बात क्या है अम्मा कुछ तो बताओगी ।" दुर्गा ने पूछा ।

  सौरभ ने भी यही प्रश्न किया
बहुत देर तक दोनों मिलकर कारण पूछते रहे । अंत में नयना ने किसी से कुछ भी नही बताने की शर्त पर कहा ।

   " बेटा आपके पिता के हम रखैल रहली । ऊ के हम अपने जान से ज्यादा मानत रहली । हमरी बिटिया के  दुर्गा नाम ऊ है  दिए रहलें ।दस बीघा खेतवा भी  उनही के दिहल रहल । घर से चोरी  लिख दिहले  हमका । अपने कत्ल से पाहिले ठाकुर साहब हमका एक खत लिखे रहलें  ।दुर्गा उन्ही की बेटी है ।ठाकुर साहब के हूबहू चेहरा दुर्गा के चेहरा पर रखल बा ।थोडा  इंतजार करा अबै हम आइ ला। "


     दस मिनट बाद नैना एक चिट्ठी लेकर कमरे में दाखिल हुई ।

   सबूत के नाम पर हमरे पास एगो  चिट्ठी भर बा । ई हम पढ़त बाटी धियान से सुना ।

    " नैना बिटिया के जन्म पर  बहुत ख़ुशी हुई  । यह मेरी बिटिया है । इसका नाम दुर्गा रखना है । इसकी पढाई और परवरिश का सारा खर्चा मेरा रहेगा । इसे नाच गाना मत सिखाना । यह राज किसी को कभी पता न चले । मैं इसकी शादी भी अच्छे घर में करवा दूंगा । और अब नाचना गाना छोड़ दो । तुम्हारी सारी जिम्मेदारी अब मेरी होगी ।

            - ठाकुर त्रिभुवन सिंह
         चिट्ठी को अब सौरभ और दुर्गा बार बार पढ़े जा रहे थे । नैना की आँखों से आँसू बन्द ही नही हो रहे थे , और कुछ ही पलों में दुर्गा और सौरभ आँख में आँसू लेकर एक दूसरे को गले लगा कर चिपक गए। यह भाई बहन का  प्यार अब शैलाब की शक्ल अख्तियार कर चुका था ।

             - नवीन मणि त्रिपाठी

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को  "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को  "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ओह उम्दा कहानी , अलग अंदाज़ और अलग समापन

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