तीखी कलम से

रविवार, 14 अगस्त 2016

हरी   रंगत   गुलाबी   सुर्खरूं  चेहरा  मचल  जाए ।
मेरी महफ़िल में आ जाओ  मिरा रुतबा बदल जाए ।।

नजाकत  से  भरी  नजरों  से छलके  जाम  है तेरे ।
अंधेरी  रात किस्मत में जरा  सूरज  निकल जाए ।।

बड़ी मासूमियत  से कत्ल  करने का हुनर  तुझमे ।
मेरे कातिल चला शमसीर तेरा  दिल बहल जाए ।।

हमारी हर कलम तो  सिर्फ  तेरी जीत  लिखती है ।
तेरी जुल्फों के साये में चलो लिक्खी गजल जाए ।।

खुदा  महफूज  रक्खे उन  रकीबों  के  नजारों से ।
कहीं ये  वक्त  से पहले  न  तेरा हुस्न  ढल  जाए ।।

बड़ी  उम्मीद  से आता तेरी  दहलीज  पर अक्सर ।
है परवाने का ये मकसद शमा के साथ जल जाए ।।

                        --नवीन मणि त्रिपाठी

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