तीखी कलम से

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

लिखता मिला मज़ार पे अरमान आदमी

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खोने  लगा  यकीन  है  अनजान आदमी ।
जब से बना है मौत  का सामान आदमी ।।

बाज़ार  सज  रहे हैं नए जिस्म को  लिए ।
बनकर बिका है मुल्क में दूकान आदमी ।।

ठहरो  मियां  हराम  न  खैरात  हो  कहीं ।
माना कहाँ  है  वक्त  पे एहसान  आदमी ।।

दरिया में डालता  है वो नेकी का हौसला ।
देखा  खुदा   के   नाम  परेशान  आदमी ।।

मजहब  तो  शर्मशार  तेरी  हरकतों  पे  है ।
कुछ  मजहबी  इमाम भी  शैतान आदमी ।।

मतलब परस्तियों का जरा देखिये सितम ।
बेचा   है  मोल  भाव  पे  ईमान  आदमी ।।

दौलत  से आरजू  का फ़कत वास्ता  यही ।
लिपटा  कफ़न के दाम में शमशान आदमी ।।

शातिर लिखा गया है उसी आम सख़्श को ।
जिसको  कहा  गया  था है नादान आदमी ।।

शायद  मुगालतों में  जिए  जा  रहा है वो ।
लिखता मिला मजार पे अरमान आदमी ।।
       

    -नवीन मणि त्रिपाठी

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