तीखी कलम से

शनिवार, 27 अगस्त 2016

निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए

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कुछ   मुद्दतो  के  बाद  सही  फैसले  हुए ।
निकले   तमाम  हाथ  तिरंगे  लिए   हुए ।।

मत पूछिए गुनाह  किसी  के  हिजाब का ।
देखा  कसूरवार   के   शिकवे  गिले  हुए ।।

हालात   पराये  है  किसी  के  दयार  में ।
है    वक्त  बेहिसाब   बड़े   हौसले   हुए ।।

तकसीम कर  रहा था  हमारा मकान जो।
शायद उसी के  घर में कई जलजले हुए ।।

पत्थर  न  फेंकिए है  शहीदों का  कारवां ।
कैसे  हिमाकतों  से  लगे  सिलसिले  हुए ।।

कातिल तेरा कलाम मुकम्मल कहां  रहा ।
नाकामियों   के   नाम  तेरे   पैतरे   हुए ।।

तुझको  तेरी  जुबान  में देना  जबाब था ।
तेरी  अदावतों   से  खड़े  फ़लसफ़े  हुए ।।

हिन्दोस्ताँ का अम्न  मिटाने  की  हसरतें ।
हो कर  गयीं   हैं दफ़्न यहां मकबरे हुए ।।

बूढा  फ़कीर  तान के सीना  खड़ा मिला ।
टूटा   तेरा   वजूद   बहुत  फासले   हुए ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

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