तीखी कलम से

शनिवार, 10 सितंबर 2016

मुक्तक


लगा कर आग पानी में हिदायत तोड़ दी तुमने ।
हमारी जिंदगी से इक अदावत जोड़ दी तुमने ।।
इरादा कत्ल का  था तो  कोई  खंजर चला देते ।
दुपट्टा यूँ हटाकर  क्यूँ  सराफत छोड़ दी तुमने ।।



तेरी  यादें   बड़ी  बेशर्म   होकर  आ  ही  जातीं  हैं ।
तरन्नुम  जो  कभी  छेड़ी  उसे  वो गा ही जाती  हैं ।।
बड़ी मशहूर हस्ती हो भुला पाना भी  ना  मुमकिन ।
करूँ कितना जतन फिर भी अदाएं भा ही जातीं हैं।।

                            

शरारत थी या साजिश थी मेरा महबूब ही जाने ।
दर्द  देकर  वही  हैं पूछते क्या दर्द  है  तुमको ।।
बताना  गैर  वाजिब  था कि तू है जिंदगी मेरी ।।
तुम्हारे हुस्न के खंजर चुभे दिन रात हैं मुझको ।।



नींद आने से पहले रूह तुझको  याद  करती है । 
मेरी जाने वफ़ा तुझसे नज़र फरियाद करती है ।।
न जाने किन गुनाहों की सजा ए इश्क ढोता हूँ ।
तुम्हारे हुस्न की हरकत मुझे बरबाद करती है ।।



खुदा जाने कि मंजिल कौन सी तुम हो मुकद्दर की ।
आँधियाँ सिर्फ नफरत की मिरे हिस्से में क्यूँ आईं ।
नजर जब भी गई दामन को छू लेने की हसरत से ।
मुहब्बत कुछ सबक लेकर तेरे दर से गुजर आई ।।
              - नवीन

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