तीखी कलम से

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

जिंदगी है ढलान पर भाई

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आज  मुद्दा  ज़ुबान  पर  भाई ।
गोलियां क्यूँ  जवान पर भाई ।।

उठ रहीं  बेहिसाब उँगली क्यूँ ।
इस लचीली कमान  पर भाई ।।

कुछ  वफादार  हैं अदावत  के।
तेरे  अपने  मकान  पर  भाई।।

बाल बाका न हो सका  उनका।
खूब  चर्चा  उफान  पर  भाई ।।

मरमिटे हम भी तेरी  छाती पर।
चोट  खाया  गुमान  पर  भाई ।।

बिक रही दहशतें  हिमाक़त में ।
उस की छोटी दुकान पर भाई ।।

गीदड़ो का फसल पे  हमला है ।
बैठ  ऊँचे   मचान   पर  भाई ।।

यार   देता  हुनर   उसे   जंगी ।
क्या मिला है उड़ान पर भाई ।। 

प्याज बिक जाएगी अठन्नी में ।
जुल्म कैसा किसान पर  भाई ।।

मजहबी  कत्ल भी  इबादत  है ?
दिख गया कब कुरान पर भाई ।।

कुछ हकीकत से वास्ता रख लो ।
जिंदगी   है  ढलान   पर   भाई ।।

           -नवीन मणि त्रिपाठी

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