तीखी कलम से

शनिवार, 10 सितंबर 2016

सम सामयिक दोहे

बलात्कार पर कर रहे मोदी  बिल  को पेश ।
दलित नही महिला अगर होगा हल्का केस ।।

ब्लात्कार में  भेद  कर   तोड़ा   है  विश्वास ।
अच्छे दिन अब लद गए टूटी सबकी आस ।।

कितना सस्ता ढूढ़ता  कुर्सी का  वह  मन्त्र ।
मोबाइल के दाम में  बिक जाता जनतन्त्र ।।

सड़को पर  इज्जत  लुटे मथुरा  भी  हैरान ।
न्याय   बदायूं  मांगता  सब  उनके  शैतान ।।

नए  सुशासन  दौर  में  जनता  है गमगीन ।
सौगातों   में   ला   रहे   वही  सहाबुद्दीन ।।

छूटा  गुंडा  जेल से  जिसका  था  अनुमान ।
जंगल राजा दे गया चिर परिचित फरमान ।।

न्याय पालिका मौन है , मौन  हुई सरकार ।
अपराधी   बेख़ौफ़  सब  कैसा   भ्र्ष्टाचार ।।

झाड़ू का विश्वास  क्या  गन्दा इसका कृत्य ।
व्यभिचारी को छोड़कर स्वजन बहारे नित्य ।।

काम वासना शत्रु सम वैरी सकल समाज ।
जो इनसे उन्मुक्त हो पावे  जग  का ताज ।।

नेह लुटाना  विष हुआ जाति पाति के देश ।
आरक्षण  के  नाम  पर  नेता  बदले  भेष ।।

            -- नवीन मणि त्रिपाठी

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