तीखी कलम से

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

मत कहो उसे ज़ालिम , बेवफा नहीं लगता



212 1222 212 1222



ये हवाओं की थी साजिश शजर नहीं कहता ।

अलविदा हो के क्यूँ जाएगा शाख से पत्ता ।।




बात कुछ तो तेरी महफ़िल में लग गई होगी ।

दर्द यूं ही कोई चेहरा बयां नहीं करता ।।




याद आएगी मेरी शाम तक नही उसको ।

कब शराबी भी कोई बात होश में कहता ।।




क्यूँ यकीं नही होता है उसे किसी पर भी ।

आग गर न हो तो घर से धुआँ नही उठता ।।




फिर कहा जमाने ने मैंकदों का आँका हूँ ।

गर शराब सस्ती हो रिन्द फिर कहाँ डरता ।।




वो उसूल रखता है हुस्न की हिफ़ाज़त में ।

मत कहो उसे जालिम बेवफ़ा नहीं लगता ।।




-- नवीन मणि त्रिपाठी

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