तीखी कलम से

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

ग़ज़ल -याद आया फिर मुझे गुजरा ज़माना शुक्रिया

2122 2122 2122 212
मिल गया है आपका  वह  ख़त  पुराना शुक्रिया ।
याद  आया  फिर  मुझे  गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।

ढल  गई  चेहरे  की रौनक ढल गया वह चाँद  भी ।।
हुस्न  का  अब  होश   में आकर  बुलाना शुक्रिया ।।

कुछ अना के साथ में नज़रों की वो तीखी क़सिस।
बाद मुद्दत के  तेरा यह  दिल  जलाना ,शुक्रिया ।।

मुस्तहक़ थी आरजू पर हो सकी कब मुतमइन ।
वक्त  पर  आवाज  देकर  यूँ  बुलाना  शुक्रिया ।।

जिक्र  कर लेना मुनासिब  है नहीं  इस  दौर  में ।
फिर गमे उल्फ़त का देखो लौट आना, शुक्रिया ।।

यह   गुलाबी  पंखुड़ी  खत  में मिली सूखी  हुई ।
दे दिया है इश्क  का फिर  से  फ़साना  शुक्रिया ।।

थी  कहीं  मजबूरियां  तो  सच  बता  देती  उसे ।
आसुओं  का  सुन  लिया सारा  तराना शुक्रिया ।।

चुप रहा  क़ातिल  की बस्ती में सराफत  देखिये ।
गैर  के  पहलू  में  जाकर  मुस्कुराना  शुक्रिया ।।
           नवीन

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