तीखी कलम से

रविवार, 22 जनवरी 2017

ग़ज़ल - ख़बर पूरी है उसको रहजनों की

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नई   तादात   देखी   कातिलों  की ।
है चर्चा  फिर तुम्हारी रहमतों  की ।।

मयस्सर   जिंदगी  होती   दुआ  से ।
उसे अब याद  आई  मजहबों  की ।।

बहुत  अच्छा  लगा  जो आ गए हो ।
हमें  तो  फ़िक्र  थी  तेरे  ख़तों  की ।।

जो संगे दिल लिए फिरते थे अक्सर।
कहानी  लिख रहे  हैं आसुओं  की ।।

दुपट्टा  क्यूँ   सरक जाता  है  उसका ।
खबर  पूरी  है उसको  रहजनों  की ।।

बहक जाना  मुनासिब हो  गया  था ।
यही  फ़ितरत  बनी थी   मैकदों  की ।।

यहाँ   बदनामियाँ  हासिल   हुई   हैं ।                         है  इतनी सी निशानी मंजिलों   की ।।

नज़र  तहज़ीब  क्यूँ   खोने  लगी  है ।
दिखी  जुर्रत  बहुत  गुस्ताखियों  की।।

     -- नवीन मणि त्रिपाठी

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