तीखी कलम से

रविवार, 22 जनवरी 2017

ग़ज़ल -चाँद को जब भी सवांरा जाएगा

2122 2122 212 
चाँद   को   जब  भी  सवाँरा   जाएगा ।
टूट   कर    कोई    सितारा    जाएगा ।।

है  कोई   साजिश  रकीबों   की  यहाँ ।
जख़्म दिल का  फिर उभारा  जाएगा ।।

सिर्फ मतलब के  लिए मिलते हैं लोग । 
वह  नज़र   से  अब  उतारा  जाएगा ।।

कुछ  अदाएं  हैं  तेरी  कातिल   बहुत ।
यह  हुनर   शायद  निखारा  जाएगा ।।

रिंद  है  मासूम   उसको  क्या  खबर ।
जाम   से  बे   मौत   मारा    जाएगा ।।

उम्र   गुजरी   है   वफादारी  में   सब ।
बेवफा    कहकर   पुकारा   जाएगा ।।

टूट  जायेंगी  वो   दिल  की  बस्तियां ।
गर   तुम्हारा   इक  इशारा   जाएगा ।।

मुंतज़िर   वह    आरज़ू    मायूस   है ।
वस्ल   का  तनहा   सहारा   जाएगा ।।

ज़ार मिट्टी का है मत  इतरा  के चल ।
हर  गुमां इक  दिन तुम्हारा  जाएगा ।।

हिज्र में कुछ ज़िद का आलम देखिए ।
वह   ज़नाज़े   में   कुँवारा   जाएगा ।।

ठोकरों    के    बाद    भी   दीवानगी ।
मैकदों   में    वह   दोबारा   जाएगा ।।

ख्वाब में शब्  भर  रही तुम  साथ में ।
दिन  भला  कैसे   गुज़ारा   जाएगा ।।

क्या  हुआ गर  चाँद  में कुछ  दाग है ।
ईद  की   ख़ातिर   निहारा   जाएगा ।।

     -- नवीन मणि त्रिपाठी

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