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है नई नई ये मेंरी ख़ता इसे जुल्म में न शुमार कर ।
है जो आशिकी का ये दौर अब इसे इस तरह न तू ख्वार कर ।।
उसे जिंदगी से नफ़ा मिला मुझे दर्द का है सिला मिला ।
ये हिसाब अब न दिखा मुझे न तिजारतों से दरार कर ।।
वो हवा चली ही नहीं कभी वो दरख़्त को न नसीब थी ।
मेरे फ़िक्र की है ये आरज़ू तू इसी चमन में बहार कर ।।
यहाँ चाहतों में है दम कहाँ कई चाहतें भी दफ़ा हुईं ।
है मुहब्बतों का सवाल ये कहीं जिंदगी को निसार कर ।।
तुझे पत्थरों सा है दिल मिला मेरे दर्द की है न इंतिहा ।
न ठहर ठहर के तू वार कर हमें गम न कोई उधार कर ।।
तेरी आसमा पे नज़र गई तेरी हसरतें भी बदल गईं ।
है उड़ान की तेरी ख्वाहिशें तो कफ़स से खुद को फरार कर ।।
सारी उल्फतों में हैं दौलतें तेरा रूह से है न वास्ता ।
तेरे हौसलों में है दम अगर मेरे गर्दिशों से करार कर ।।
ये जो आंसुओ के निशान हैं न छुपा के चल तू नकाब में ।
तुझे पढ़ लिया हूँ मैं गौर से यूँ तमाम रात गुज़ार कर ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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