तीखी कलम से

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

है नई नई ये मेरी खता

11212  11212 11212 11212
है  नई   नई  ये   मेंरी  ख़ता  इसे   जुल्म  में  न  शुमार   कर ।
है जो आशिकी का ये दौर अब इसे इस तरह न तू ख्वार कर ।।
उसे  जिंदगी  से  नफ़ा  मिला  मुझे  दर्द  का  है सिला मिला ।
ये  हिसाब  अब  न  दिखा  मुझे  न  तिजारतों  से  दरार कर ।।
वो  हवा  चली  ही  नहीं  कभी  वो दरख़्त को न नसीब थी ।
मेरे  फ़िक्र  की  है ये  आरज़ू  तू  इसी  चमन  में बहार कर ।।
यहाँ  चाहतों  में  है  दम  कहाँ  कई   चाहतें  भी  दफ़ा   हुईं ।
है मुहब्बतों  का  सवाल  ये  कहीं  जिंदगी  को  निसार कर ।।
तुझे पत्थरों  सा  है  दिल  मिला  मेरे   दर्द  की  है न  इंतिहा ।
न  ठहर ठहर  के तू  वार  कर  हमें  गम  न  कोई उधार कर ।।
तेरी  आसमा  पे   नज़र  गई   तेरी  हसरतें   भी  बदल   गईं ।
है उड़ान की तेरी ख्वाहिशें तो कफ़स से खुद को फरार कर ।।
सारी  उल्फतों   में   हैं  दौलतें   तेरा  रूह   से  है  न वास्ता ।
तेरे  हौसलों  में  है  दम  अगर  मेरे  गर्दिशों  से  करार   कर ।।
ये  जो  आंसुओ  के निशान  हैं  न  छुपा के चल तू नकाब में ।
तुझे  पढ़  लिया  हूँ  मैं  गौर  से  यूँ  तमाम  रात  गुज़ार  कर ।।
              --नवीन मणि त्रिपाठी

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